यान देने योग्य बात है कि यह पद पूरी तरह से आध्यात्मिक दृष्टिकोण से रचा गया है। इसमें “सूक्ष्म” शब्द आत्मा, ब्रह्म, या परम तत्व की ओर संकेत करता है — जो स्थूल जगत के पीछे छिपी अदृश्य सत्ता है।
आइए, हर पंक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से और गहराई से समझें:
- सूक्ष्म धरनी आकाश है
यहाँ “धरनी” (पृथ्वी) और “आकाश” (आकाश तत्त्व) को सूक्ष्म कहा गया है।
अर्थ: यह स्थूल जगत जो हमें दिखता है, वह वास्तव में एक सूक्ष्म चेतना से ही उपजा है। ब्रह्मांड का यह ढांचा सूक्ष्म सत्ता (परमात्मा या ब्रह्म) में निहित है।
- सूक्ष्म चंदा सूर
यहाँ “चंदा” (चंद्रमा) और “सूर” (सूर्य) को भी सूक्ष्म कहा गया है।
अर्थ: सूर्य-चंद्र जैसे भौतिक पिंड भी किसी सूक्ष्म शक्ति द्वारा संचालित हैं। यह ईश्वर की लीला है, जो साकार होकर भी निराकार है।
- सूक्ष्म नदी पहार है
नदियाँ और पहाड़ जो हमें बड़े और स्थिर लगते हैं, वे भी वास्तव में एक सूक्ष्म सत्ता का ही विस्तार हैं।
अर्थ: यह प्रकृति भी उसी चेतन शक्ति से सजीव है, जो हर कण में व्याप्त है।
- सूक्ष्म धामा धुर
“धामा” का मतलब दिव्य धाम या परम लोक और “धुर” यानी आदि मूल।
अर्थ: परमधाम और सृष्टि का मूल भी सूक्ष्म है — न तो इंद्रियगोचर है, न ही मापनीय, परन्तु वही परम सत्य है।
निष्कर्ष:
इस पद में यह कहा गया है कि सारा जगत चाहे वह स्थूल दिखाई दे, उसकी मूल सत्ता सूक्ष्म और दिव्य है। यही विचार उपनिषदों, गीता, और संत परंपरा में बार-बार आता है — कि परमात्मा सर्वत्र है, परंतु वह इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता, वह अनुभव और आत्मबोध से ही जाना जा सकता है।