कृष्ण और अर्जुन: समर्पण, श्रद्धा और आत्मा का संवाद

“अर्जुन कृष्ण को क्यों प्रिय था, और कृष्ण अर्जुन पर क्यों फिदा थे?”
इसका उत्तर केवल युद्ध या रिश्ते की सतह तक सीमित नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक स्तर पर बहुत व्यापक है।

आइए इसे तीन मुख्य दृष्टिकोणों से समझते हैं:


  1. अर्जुन: समर्पित शिष्य और सच्चा मित्र

कृष्ण अर्जुन को प्रिय क्यों मानते थे?

श्रद्धा और विश्वास: अर्जुन ने कभी कृष्ण की बातों पर प्रश्न नहीं उठाया, लेकिन जब भी शंका हुई, विनम्रता से पूछा। यही गुण गीता का जन्म बना। अर्जुन ने “मैं आपका शिष्य हूँ, मुझे सिखाइए” कहकर अपने अहंकार को त्याग दिया।

धर्म के प्रति निष्ठा: अर्जुन का संघर्ष केवल युद्ध का नहीं, बल्कि धर्म-अधर्म के बीच था। कृष्ण को यह प्रिय था कि अर्जुन बिना व्यक्तिगत लाभ के धर्म की राह पर चलना चाहता था।

मित्रता में सच्चाई: अर्जुन कृष्ण को मित्र, सारथी, और मार्गदर्शक — तीनों रूपों में देखता था। वह न तो कृष्ण की शक्ति से चकाचौंध हुआ, न कभी उनका उपयोग किया।


  1. कृष्ण: मार्गदर्शक, मित्र और प्रेम से भरे

कृष्ण अर्जुन पर “फिदा” क्यों थे?

अर्जुन की जिज्ञासा: अर्जुन केवल आदेश नहीं मानता था, वह सत्य को जानना चाहता था। यही कृष्ण को प्रिय था — एक शिष्य जो प्रश्न करता है, लेकिन अहंकार से नहीं, ज्ञान की प्यास से।

आत्मिक संबंध: अर्जुन और कृष्ण का संबंध केवल इस जन्म का नहीं था। महाभारत में कई बार संकेत है कि यह रिश्ता दिव्य था — दो आत्माओं का सह-अस्तित्व।

कृष्ण ने अर्जुन को “गीता” का पात्र बनाया: यह कोई साधारण बात नहीं। पूरे युद्ध में केवल अर्जुन को ही वह ज्ञान मिला, जो ब्रह्म की साक्षात व्याख्या थी। क्योंकि कृष्ण जानते थे — अर्जुन उस ज्ञान को धारण करने योग्य है।


  1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: आत्मा और परमात्मा का संवाद

अर्जुन आत्मा है, कृष्ण परमात्मा। जब आत्मा भ्रमित होती है, तब परमात्मा मार्ग दिखाता है। गीता केवल अर्जुन और कृष्ण का संवाद नहीं — बल्कि हर इंसान के भीतर के संघर्ष और उसके मार्गदर्शक की कहानी है।


निष्कर्ष:

कृष्ण अर्जुन पर फिदा इसलिए थे, क्योंकि अर्जुन में प्रश्न था, समर्पण था, और आत्मा की पुकार थी।
अर्जुन को कृष्ण प्रिय इसलिए थे, क्योंकि उन्होंने मोह के क्षण में भी उसे खुद से मिलवाया।

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