“जब प्रेम के दो स्वरूप मिले: राधा की आत्मा, रुक्मिणी का समर्पण

राधा और कृष्ण का आध्यात्मिक रिश्ता, जो रुक्मिणी को पसंद नहीं था — इस पर दृष्टि डालने के लिए हमें प्रेम, भक्ति, और ईश्वर के रहस्य को आत्मा की गहराई से समझना होगा।


  1. राधा और कृष्ण: आत्मा और परमात्मा का मिलन

राधा और कृष्ण का रिश्ता सांसारिक नहीं था। यह प्रेम:

नित्य और दिव्य था।

राधा “आत्मा” का प्रतीक थीं, और कृष्ण “परमात्मा” का।

उनका मिलन एक अहंकार-शून्य समर्पण था, जिसमें राधा ने अपने अस्तित्व को कृष्ण में विलीन कर दिया।

राधा का प्रेम माँगता नहीं, बस देता है — बिना शर्त, बिना अधिकार।


  1. रुक्मिणी: धर्मपत्नी और सांसारिक प्रेम का प्रतीक

रुक्मिणी का रिश्ता कृष्ण से:

वैवाहिक और धार्मिक था।

वह मर्यादा और संस्कृति का रूप थीं।

उन्होंने कृष्ण को पति रूप में चाहा — पूर्ण अधिकार, समर्पण और प्रेम के साथ।

रुक्मिणी एक रानी थीं, लेकिन साथ ही स्त्री-सुलभ भावनाओं से भरी थीं — और इसलिए राधा के प्रति कृष्ण के असीम आकर्षण को समझ पाना कठिन था।


  1. रुक्मिणी को राधा क्यों पसंद नहीं थीं?

कृष्ण के मन में राधा की स्मृति अमर थी।
रुक्मिणी यह जानती थीं कि कृष्ण भले ही उनके पति हैं, लेकिन उनके अंतःकरण में राधा का स्थान अलग है — एक अदृश्य, परंतु गहन प्रेम।

राधा का प्रेम नियमों से परे था, और रुक्मिणी मर्यादा की देवी थीं। यह अंतर उन्हें असहज करता था।

एक कथा आती है —
रुक्मिणी ने कृष्ण से पूछा:
“आपने मुझे कभी वो प्रेम नहीं दिया जो राधा को दिया। क्यों?”

कृष्ण मुस्कराए और बोले:
“तुमने मेरा साथ चुना, राधा ने मुझे चुना ही नहीं — वह तो मुझमें ही विलीन हो गई थी।”


  1. आध्यात्मिक अर्थ:

राधा “प्रेम की पराकाष्ठा” हैं, जिसमें स्वयं का विलोपन हो जाता है।

रुक्मिणी “संयमित भक्ति” हैं, जिसमें प्रेम है, परंतु सीमाओं के भीतर।

दोनों पूजनीय हैं — पर दोनों की भूमिकाएँ भिन्न हैं।


निष्कर्ष:

राधा कृष्ण का वह प्रेम थीं, जो कभी पाया नहीं गया, लेकिन कभी खोया भी नहीं।
रुक्मिणी वह साथ थीं, जो जीवनभर निभाया गया, लेकिन कभी राधा की तरह समझा नहीं गया।

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