आध्यात्मिक ऊर्जा और चक्रों के माध्यम से आत्मा का दिव्य मिलन: कबीर की शिक्षाओं से प्रेरित

गरीब कंठ कमल में, कालसहस्त्र कमल में राम।
हृदय कमल में जीव है, अष्ट कमल विश्राम॥””गरीब कंठ कमल में”
– “गरीब” संत कबीर या किसी संत का आत्म-उपसंहार (humble self-reference) है।
– “कंठ कमल” का अर्थ है – गला या गले का चक्र (विशुद्धि चक्र), जिसे योग में एक कमल के रूप में देखा जाता है।
– यह चक्र सत्य, वाणी, और शुद्धता से जुड़ा होता है।
– कबीर कहते हैं कि उन्होंने इस चक्र में आत्मिक कंपन (divine vibration) का अनुभव किया है
“कालसहस्त्र कमल में राम”
– “कालसहस्त्र” = काल (समय) + सहस्र (हज़ार), यानी सहस्रार चक्र, जो ब्रह्मरंध्र पर होता है (सिर के ऊपर)।
– सहस्रार चक्र को हज़ार पंखुड़ियों वाला कमल कहा जाता है।
– यहाँ कबीर कह रहे हैं कि राम (परमात्मा) का वास सहस्रार चक्र में है।
– जब साधक ध्यान और योग से इस चक्र तक पहुँचता है, तब उसे ईश्वर (राम) का साक्षात्कार होता है।”हृदय कमल में जीव है”
– योग और वेदों के अनुसार जीवात्मा (individual soul) का निवास हृदय कमल में होता है।
– यह अनाहत चक्र से जुड़ा हुआ है, जो प्रेम, करुणा और आत्मा का केंद्र माना जाता है।
– संत यह बता रहे हैं कि आत्मा (जीव) का सच्चा निवास स्थान हृदय है।”अष्ट कमल विश्राम”
– “अष्ट कमल” का एक अर्थ मूलाधार चक्र भी हो सकता है, जिसे योग में 8 पंखुड़ियों वाला कहा गया है।
– यह शरीर की नींव है – जीवन ऊर्जा (कुंडलिनी) का स्रोत।
– “विश्राम” का अर्थ है कि आत्मा जब जगत के झंझट से ऊपर उठती है, तो वह इन चक्रों (कमलों) में विश्राम पाती है।
– यह भी संभव है कि “अष्ट कमल” आठ चक्रों का प्रतीक हो (मूलाधार से सहस्रार तक), जिनमें आत्मा विश्राम करती है।यह रचना मानव शरीर को एक दिव्य मंदिर की तरह प्रस्तुत करती है, जिसमें:

कंठ में वाणी और सत्य की शक्ति है,

हृदय में आत्मा (जीव) का वास है,

सहस्रार में ईश्वर (राम) का निवास है,

और ये सब “कमल” रूपी चक्रों से जुड़े हैं।

कबीर यह कह रहे हैं कि शरीर ही परमात्मा का मंदिर है। इसे जानने वाला योगी या साधक ध्यान द्वारा आत्मा और परमात्मा का मिलन कर सकता है। जिस समय हम ध्यान करते है तो पद्मासन में बैठते है उस स्तिथि में हम धयान का में केंद्र मुलाधार से लेकर गुरु कृपा से सहस्त्र चक्र तक होता है और हमारे अंगूठे जो।कि आध्यात्मिक शक्ति को प्रवाह होता है उसे मूलाधार के समीप होने से उस तरफ हमारा ध्यान नही जाता पर योग में जो आध्यात्मिक लहर शरीर मे दौड़ती है वह अंघुथे के पौर से लेकर सहस्त्र चक्र तक बिना रुके गति करती है जिसका अनुभव गुरु कृपा से साधक को ध्यान की अवस्था मे होता है और इसे साधक ध्यान में अनुभव करता है चुकी यह स्थान पाव में है यहां आत्मा का चलन तो है पर उसे मर्त्यु के समय निकल।नही सकती इसलिए मर्त्यु के समय आत्मा अंघुथे से ऊपर की बहती है और मूलाधार से ऊपर सहस्त्र चक्र की ओर चलती है चुकी हमारे शरीर मे 9 स्थान है जहाँ से आत्मा निकलती है पर जब योगी अपनी आत्मा दसम स्थान जो कि सहस्त्र चक्र है वहा से निकलती है इसीलिए हमारे यहां कपाल क्रिया होती है जिसमे अगर आत्मा 9 स्थानों से नही निकल पाई तो कपाल को भेद के निकल जाए गुरु कृपा से जब उनकी ऊर्जा हमारे हृदय चक्र को जाग्रत कर ऊपर की ओर बढ़ती है और फिर पूर्रे शरीर में चक्कर लगाती गया तो हमे समाधि अवस्था मे रोम रोम से आआज आती है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *