एक सच्चे संत में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना गया है:
- सत्यनिष्ठा (ईमानदारी) – संत को सत्य बोलने वाला और सत्य के मार्ग पर चलने वाला होना चाहिए।
- निर्मलता और निष्कपटता – उसके हृदय में किसी के प्रति छल, कपट या द्वेष नहीं होना चाहिए।
- त्याग और वैराग्य – संत सांसारिक मोह-माया और भौतिक लालसाओं से ऊपर होता है।
- करुणा और दया – वह सभी जीवों के प्रति करुणामय और सहानुभूतिपूर्ण होता है।
- क्षमा और सहिष्णुता – संत को दूसरों की गलतियों को क्षमा करना और सहनशील रहना आता है।
- विनम्रता – उसमें अहंकार नहीं होता; वह सदा विनम्र रहता है, चाहे कितनी भी सिद्धियाँ या ज्ञान प्राप्त हो।
- सदाचरण – उसकी वाणी, आचरण और व्यवहार सभी में शुद्धता और मर्यादा होती है।
- ईश्वर-भक्ति और ध्यान – वह ईश्वर के प्रति निष्ठावान होता है और नियमित साधना, भजन, कीर्तन आदि करता है।
- ज्ञान और विवेक – उसे शास्त्रों का ज्ञान होता है और वह उचित-अनुचित का विवेक रखता है।
- लोक कल्याण की भावना – वह अपने ज्ञान और जीवन का उपयोग दूसरों के कल्याण के लिए करता है, न कि केवल अपने लिए।