ईश्वर को सगुण (साकार, रूपयुक्त) या निरगुण (निर्विकार, रूपहीन) मानना, या उन्हें भक्त और भगवान दोनों के रूप में देखना, पूरी तरह भक्त की श्रद्धा, दृष्टिकोण और आध्यात्मिक समझ पर निर्भर करता है। हर व्यक्ति अपने विश्वास, अनुभव और मन की स्थिति के आधार पर ईश्वर को अलग-अलग रूपों में देखता और पूजता है। यह श्रद्धा ही भक्त को ईश्वर के निकट लाती है, चाहे वह किसी भी दृष्टिकोण से उनकी आराधना करे।