भगवद्गीता से सन्दर्भ सिद्ध अवस्था और एकत्व का अनुभव उस व्यक्ति को होता है जो वैराग्य की स्तिथि मे श्लोक
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः॥”
जो योग में स्थित है, वह आत्मा को सब प्राणियों में और सब प्राणियों को आत्मा में देखता है — वह सब जगह समदृष्टि वाला होता है। ऐसी अवस्था मे वही ‘महायोगी’ है, जो भेद से परे होकर एकत्व का अनुभव करता है।उपनिषदों का दृष्टिकोण।:
“तत्त्वमसि श्वेतकेतो:
“तू वही है, हे श्वेतकेतु” — यानी ब्रह्म और जीव में कोई भेद नहीं। जब कोई इस ज्ञान को प्रत्यक्ष अनुभव कर लेता है, तभी उसकी सिद्ध अवस्था होती है।. योग वशिष्ठ के विचार के आसार उन्होंने कहा है यदा न ज्ञायते द्वैतं तदा तत्त्वं प्रकाशते।”
जब द्वैत (भेद-बुद्धि) समाप्त हो जाती है, तभी परम सत्य प्रकट होता है।बिस तरह से
सिद्ध अवस्था में ‘महायोगी’ कौन होता है?
जिसने मन, अहंकार और भेद की संकल्पना का अतिक्रमण कर लिया है।
जो संसार को एक ही ब्रह्मरूप में देखता है।
जिसके लिए आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं रहता।
जो केवल साक्षीभाव में स्थित रहता है — न करता है, न कुछ चाहता है।