अनाहद नाद और आकाश तत्व का आध्यात्मिक जीवन में गहरा संबंध है, क्योंकि दोनों सूक्ष्म चेतना, आत्मिक जागृति और परम सत्य से जुड़े हैं। संत के आध्यात्मिक पथ पर ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और आध्यात्मिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैं इसे संक्षिप्त और स्पष्ट रूप से समझाता हूँ,मेरी दृस्टि से अनाहद नाद का स्वरूप ये है : अनाहद नाद वह आंतरिक, अनघटित ध्वनि है जो बिना किसी बाहरी साधन के सुनी जाती है। इसे योग और तंत्र में “नादब्रह्म” या ईश्वरीय ध्वनि कहा जाता है। यह सूक्ष्म ध्वनियाँ जैसे घंटी, बांसुरी, या गूंज संत के ध्यान में प्रकट होती हैं। जो साधना से ओर गुरु के द्वारा शक्तिपात कर शिष्य के हृदय में रोपित कर उसको ऊपर की ओर यानी हृदय से सहस्त्र चक्र तक फिर पूरे शरीर मे नाड़ियों के माध्यम से संचालन कर ऊर्जा से भर दिया जाता है इससे शरीर मे अनाहद महसूस होती है और ध्यान एकाग्र होने लगता है ये ध्वनि का चलन शरीर मे हरकत की तरह महसूस होता है इस हरकत की आवज को संतो ने ओम नाम दिया है और इसका आध्यात्मिक महत्व ये है कि ये चेतना का द्वार होता है और अनाहद नाद संत को भौतिक मन से परे, सूक्ष्म चेतना की ओर ले जाता है। यह आत्मा और परमात्मा के बीच का सेतु है। हम जानते है कि ध्यान का आधार: नाद योग है जो संतो से ध्यान योग में कार्यरत होने पर आभास होता ओर शिष्य इस अनाहद नाद पर ध्यान केंद्रित कर अपने मन को एकाग्र करता है, जो समाधि की अवस्था की ओर ले जाता है।यही से शुरू होती है मोक्ष मार्ग की यात्रा यानी ओम शब्द की गूंज रोम रोम रोपित हो इंसान ध्यान की उच्च अवस्था शून्य से महाशून्य में प्रवेश कर जाता है और सब्रीर के होने के अहसास सेउक्त हो शून्य ।के बदल अह रहित हो जाता है अब उसे न सर्दी न गर्मी न भूख न प्यास बल्कि सम की अवस्था मे आ जाता है और जो मिल।गया उसी में संतुस्ट हो गुरु की याद में लय रहता है यहां
।मेंमुक्ति का मार्ग जिसमे अनाहद नाद का अनुभव संत को माया और भौतिक बंधनों से मुक्त करता है, जिससे आत्म-साक्षात्कार संभव होता है।आकाश तत्व का स्वरूप और महत्वपरिभाषा मुच् इस तरह से शास्त्रो में वर्णित है आकाश तत्व पंचमहाभूतों में सबसे सूक्ष्म है, जो अनंतता, शून्यता और चेतना का प्रतीक है। यह ध्वनि (शब्द) का मूल स्रोत है और सभी तत्वों का आधार है।आध्यात्मिक महत्व:चेतना का विस्तार: आकाश तत्व संत की चेतना को सीमित देह से परे, ब्रह्मांडीय चेतना तक ले जाता है।नाद का आधार ही आकाश तत्व ध्वनि का वाहक है। अनाहद नाद का अनुभव जब जब होता है यह आकाश तत्व के माध्यम से ही संभव होता है, क्योंकि यह सूक्ष्म ध्वनियों का मूल स्रोत है।शून्यता और मौन: आकाश तत्व संत को शून्यता और मौन की अवस्था में ले जाता है, जो आत्मिक जागृति के लिए आवश्यक है. अनाहद नाद और आकाश तत्व का परस्पर संबंधअनाहद नाद और आकाश तत्व एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हैं और आध्यात्मिक उन्नति में निम्नलिखित रूप से सहयोग करते हैं:आकाश तत्व: नाद का स्रोत: आकाश तत्व ध्वनि का मूल है। अनाहद नाद, जो सूक्ष्म ध्वनियों का समूह है, आकाश तत्व की शून्यता और सूक्ष्मता में प्रकट होता है। “आकाश तत्व वह माध्यम है जिसमें नाद उत्पन्न होता है और संत इसे ध्यान में अनुभव करता है।”चेतना का संनाद: अनाहद नाद का ध्यान संत को आकाश तत्व की अनंतता से जोड़ता है। यह प्रक्रिया मन को स्थिर करती है और सहस्रार चक्र को सक्रिय करती है, जो आकाश तत्व से संबंधित है। और ये देह के लिए प्राण का मार्ग है। जब ऊर्जा सुषुम्ना के माध्यम से ऊपर उठती है, तो आकाश तत्व में अनाहद नाद का अनुभव होता है, जो संत को समाधि की ओर ले जाता है इसके बाद उसमे ।आध्यात्मिक जागृति का अनुभव शिष्य में अनाहद नाद का अनुभव कि तरह हि होता है आकाश तत्व की शून्यता में गहरा होता है। यह संत को भौतिकता से परे, परम चेतना और ब्रह्म से एकरूपता का अनुभव कराता है अनाहद नाद और आकाश तत्व के संयोजन को हम साधनाओं के माध्यम से अनुभव कर सकते हैं:नाद योग: ॐ का जप या अनाहद नाद पर ध्यान केंद्रित करना। संत शांत वातावरण में आंतरिक ध्वनियों (जैसे घंटी, बांसुरी) को सुनने का अभ्यास करता है।प्राणायाम: नाड़ी शोधन और भ्रामरी प्राणायाम आकाश तत्व और अनाहद नाद को जागृत करते हैं। भ्रामरी में गुनगुनाहट आकाश तत्व की ध्वनि से जुड़ती है।ध्यान: सहस्रार चक्र पर ध्यान केंद्रित करना, जो आकाश तत्व का केंद्र है, अनाहद नाद को अनुभव करने में सहायक है।मौन साधना: मौन में रहकर आकाश तत्व की शून्यता और अनाहद नाद की सूक्ष्मता का अनुभव किया जा सकता है।अनाहद नाद और आकाश तत्व आध्यात्मिक उन्नति के लिए परस्पर संनादित शक्तियाँ हैं। आकाश तत्व अनाहद नाद का आधार प्रदान करता है, जो संत को चेतना के उच्च स्तरों तक ले जाता है। सुषुम्ना नाड़ी के साथ इनका संयोजन कुंडलिनी जागरण, समाधि और आत्म-साक्षात्कार को संभव बनाता है। नाद योग, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से संत इनका अनुभव कर परम शांति और मुक्ति प्राप्त करता है।