आपका धार्मिक होना कोई बढी बात नहीं है, बढी बात तो इंसान होना है।
आप किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हो और कितने भी बड़े धार्मिक हो अधूरे हो और जबतक अधूरे हो, कि जबतक आप इंसान नही बन जाते और इंसान बनने की पहली शर्त है बेदारिये कल्ब़ यानि जाग्रत हृदय। और जबतक तेरे हृदय में ईश्वर का नाम नही समायेगा और उसमें ईश्वरीय प्रकाश नहीं बनेगा तब तक तू इंसान नहीं है।
क्योंकि जब तक तेरा कल्ब़ मुर्दा है तब तक तू नफ़्स की हकूमत में है और वोह जो चाहेगा तू वही करेगा, और नफ़्स यानि मन वोह तो तुझे शैतानियत में ही लगाकर रखेगा दुनिया में ही लगाकर रखेगा। और जबतक तेरे उपर तेरे नफ़्स यानि मन की हकुमत है तब तक तू मुसलमान तो हो सकता है धार्मिक भी हो सकता है लेकिन इंसान नही हो सकता है, क्योंकि इंसान बनने की पहली शर्त है बेदारिये कल्ब़ यानि जाग्रत हृदय।