मेरा आईना

जब आईने को साफ कर पौछा तो मैं नजर उसमे आया पर घबराया नही फिर अंदर के मन से मैं को साफ किया तो तेरे मेरे  अंदर होने का आभास  हुआ ओर उस आभास से मैं को साफ किया तो तू ही तू नजर दिल के कोने में नजर आया जब तू नजर आया तो लगा दुनिया मे तू ही तू है मैं की कोई अहमियत नही है

मेरा आईना मेरे घर परही  लगा शीशा है जिसमे मेरा मन समाया हुआ है जब भी सुबह सुबह अपने को मैं आईनामें  देखता हूं तो मेरे दिल जोर जोर  से धक धक करना  शुरू कर देता है  अगर मैं सही  होता हु तो दिल।की धक धक सहज हो जाती है यदि गलत हु तो मुझेदिल की  धक धकउस समय  सुनाई नही देती तो समझ जाता हूं कि मेरे मन मे कोई खोट है ओर  अपनी गलतियों जो मैंने की है उस  तरफअपना पुनः  ध्यान देता हूं कि।मुझमे क्या कमी है और मुझसे गलतियों क्यो।हुई अपने दोष मिटाता हु  ओर सोचता हूं कि  मैं क्यो नही ध्यान लगा पा रहा हु जब ये सोचता हूं तो धक धक पुनः शुरू हो जाती है और मेरा  ध्यान गुरु मे लग जाता गया और एक अजीब सी निद्रा में मन चला जा कर शून्य होंजाता है तब सोचता हूं मैं खत्म हो तू का सामराजय मुझ पर होंगया है और मुझे सही दिशा मिल गई है

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