आपने सच ओर अकाट्य सच लिखा है पर कभी कभी जब अपनो की या गुरु की याद आती है और हम अपने इस छोटे जीवन मे अपनो।की कमी महसूस करते है तो मन कहता है
इक ये भी दीवाली है एक वो भी दीवाली थी जब मन खुश रहता गया और अपनों की।कमी नही खलती न जाने आज मुझे लगा कि मैं अकेला हु ओर मन मे उदासी है चुकी आज ही महात्मा राधा मोहन लाल।जी की जन्म तिथि है मन खुश होना चाहिए था पर मन मे लग रहा है कि जो जीवन मे खोया है उसे ये दीवाली की खुशियां पूरी नही कर सकती और जो बीत गई खुशिया उन्हें कैसे फिर से पाउ क्योकि जो चला गया वो लौट के नही आता इसी तरह ये जीवन है जो बीत गया सो बित गया आज बच्चे मेरे पास है कल न जाने कहा होंगे मोनू की।पोस्टिंग का भी कोई भरोसा नही कब तक जयपुर है बस यूं ही सोच के मन उदास हो गया और सोचने लगा ये जीवन भी क्या जीवन है जिसमे कब क्या हो जाये कुछ नही पता