गुरु के शिष्य

गुरु के पास  बहुत कम शिष्य ऐसे आते है जिनमे गुरु के प्रति निष्ठा समर्पण ओर समर्पित ओर स्वम् के मोक्ष पाने की कामना  लिए निस्वार्थ भाव से आते हो और स्वम् को समर्पित कर कुछ बनने की कामना लिए आते हो 1000 में से 990 यहि कामना लिए आते है कि उनके ओर उनके परिवार का भला हो जाये  सुख मील दुख गुरु भूकते और जो कामना उनकी इस जगत के लिए वो पूरी हो जाये उनको मोक्ष से कोई लेना देना नही होता न गुरु से सिर्फ स्वम् के स्वार्थ के लिए गुरु बनाते है गुरु के प्रति उनका कोई कर्तव्य नही होता उनका स्वार्थ सिर्फ स्वम् के भला ओर परिवार के भले के लिए हो ता है उनके गुरु के बीमार या कोई परेशानी में मानव होने के  नाते शिष्य कोई मतलब नही रखते ओर गुरु उनके लिए अपना सब कुछ न्योछावर भी कर उनको अपने समान   बना दे तो भी उनमें गुरु के प्रति गुरु जैसी भावना नही होती  गुरु उनको जीवन मुक्त बनाने के लिए उनमे से काम क्रोध लोभ मोह इर्ष्या द्वेष अहंकार घमण्ड मद ओर अन्य विकार अपनीशिक्षा कृपा व अपनी गुरु के प्रति  भक्तिभाव  से दूर कर उनको प्रेम भक्ति  ज्ञान से उनको एकाग्र कर अपने बराबर बना देते है  चुकीशिष्य या  उनको इन बातों का ज्ञान नही होता वो गुरु को सांसारिक ही समझते है और उनके साथ सांसारिक ही व्यवहार करते है  आपने लिखा  कि गुरु का मुख्य धेय्य तो शिष्य का कल्याण होता है सही है पर शिष्य भी तो काबिल ओर संस्कार वाला होना चाहिए गुरु तो हमेशा ही लुटाता रहा है पर ये शिष्य के समझ मे नही आता कि वो पूर्व जन्मों।के संस्कार के कारण शिष्य से इस जन्म में जुड़ा है और मुक्तता तक जुड़ा रहेगा उसके इस बात से शिष्य अनिभिज्ञ होता है कि गुरु हमको ईश्वर के पास मिलाने ओर जन्म बनधनो से मुक्त करवाने के लिए इस जग में अवतरित  हुवे है ओर पूर्ण है और  वह हमारे कर्म स्वम् भुगत कर शिष्य केअच्छे बुरे  कर्मो का  भुगतान अपने गुरु से कह कर कम ओर श्रेष्ठ करवाता  है और खुद   गरीब हो कर भी हमारे सारे जीवन के दैनिक कार्यों को।पूर्ण करवाता है ये कर्म गुरु करता है और शिष्य उसे अपना भाग्य में मानकर गुरु के इस निस्वार्थ भाव को दर किनार कर देता है मैंने ये  सच्चे गुरु के लक्षण लिखे  है जो फर्जी  होता है वो शिष्य को लूट  कर मूर्ख बना कर अपना काम बनवा लेता  है आज के युग मे शिष्य गुरु की पहचान ही नही कर पाते और दिखावा ऐसा करते  है कि उनके मन मे गुरु के प्रति निस्वार्थ प्रेम है जो शिष्य निस्वार्थ भाव व निष्काम सेवा गुरु की करता है ओर कुत्ता  की तरह से  बफादार रहता है  उसके लिए गुरु गधा बन के उसका बोझ  अपने ऊपर ले कर चलता है और मुकाम पर पहुचा देता है 

एक सच्चे गुरु में गुण होते है कि वो उसके पास आने वाले कि पुत्र  मान कर उसके व उसके परिवार की पिता की तरह परवरिश करे और खुद को।परिवार का एक सदस्य मान कर अपनि योग्यता से परिवार में इज्जत पाए ताकि सब लोग गुरु या पिता कितरहउनका मान सम्मान करें 

आज के युग में निस्वार्थ  गुरु निष्काम वीतरागी पूर्ण गुरु मिलना आज की दुनिया मे टेडी खीर है और जिनको वीतरागी केवल्य एकाग्रता समाधिस्थ गुरु मिल गया उनका मुक्त होना इस जन्म में समभव है ओर निसचित है मैं ओर आप भाग्य शाली है जिनकी पूर्ण गुरु व पूर्ण गुरु समकक्ष  माता पिता मिले है और हमारी संतान बेटा बेटी पौते दोहते भी उनकी।मेहर से  आध्यात्मिक उच्च संस्कार लिए हमारे परिवार में जन्म।लिया है और हम।उनकी ओर वो हमारी परवरिश कर रहे है

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