हम गुरु को अपनी शान शोकत ओर धन और दिखावे से गुरु को अपनी ओरआकर्षित करना चाहते है और सोचते इस दिखावे से गुरु हमारी ओर ज्यादा ध्यान देगा हम नही जानते कि वो तो शहंशाह का शहंशाह है उसके पास कुस चीज की कमी है चुकी गुरु उच्च स्तर पर वीतरागी ओर केवली पद पर होते है उनमें सांसारिक कोई भावना नही होती वो तो अपने गुरु के नाम पर जीते है और उन्ही के नाम के प्रति समर्पित रहते है
हम जानते है कि सद्गुरु ही शिष्य को अपनी आध्यात्मिक शक्ति दे कर समाज मे एक नया जीवन प्रदान करता है जो भौतिक दुनिया से परे पूर्णतया फकीरी लिए होता है हा गुरु ही अपने बनाये शिष्य के अंदर भौतिक दुनिया से प्राप्त विकारो को अपने तरीके से समझा कर ज्ञान के माध्यम से दूर करता है उनमें ये विकार शामिल है काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इर्ष्या द्वेष मद घमण्ड ओर दिखावा बहुत सी बार शिष्य अमीर होने के कारण गुरु को गरीब मान कर पैसे के बलबुते पर अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है पर गुरु वीतरागी विकारो से मुक्त केवली संत उस स्तर पर होता है जहां गुरु और ईश्वर एक दर्जे पर होते है वो इन लालच में नही फसते ओर शिष्य को एक ही बार मे दरवाजा का रास्ता बता कर अपने से दूर कर देते है
हम जानते है कि कोई भी गुरु किसी भी शिष्य को ज्ञान नही देता पर शिष्य की पात्रता ओर योग्यता से वो गुरु के मन को जीत लेता है और गुरु ज्ञान के साथ साथ अपना अनुभव जिसमे साधना का अनुभव होता है शिष्य को पात्र मान कर उसे दे देता है और पूर्ण कर अन्य शोध कर के कुछ ज्ञान में नयापन उतपन्न करवा देता है