मैं आदर्श बातों से थोड़ा दूर व्यवहारिक चिंतन और सोच में लग गया हूं क्योंकि आदर्श स्थिति तक पहुंचने के लिए एक बहुत लंबी यात्रा तय करनी पड़ती है और समय के साथ-साथ बहुत सी चीजें उजागर होने लगती है या समझ आने लगती है।
गुरुदेव की बहुत सारी बातें बहुत कड़वी है जिसे सभी जज्ब नहीं कर सकते। और आज के समय में तो शिष्य या इंसान इतना समझदार और अपने हितों के प्रति जागरूक हो गया है कि वह सब कुछ जानते हुए भी जानना नहीं चाहता और अपने ही द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु हर प्रकार से लगा रहता है वह यह भी जानने का प्रयास नहीं करता या जान पाता की गुरुदेव ने उसके लिए क्या लक्ष्य सोचा होगा।
गुरुदेव का चिंतन 360 डिग्री के अनुरूप होता है और लक्ष्य से प्रेरित आज के शिष्य का फोकस केवल 10 15 20 25 30 डिग्री के कोण तक ही होता है और उसी के अनुरूप उसकी सोच उसका चिंतन और उसका व्यवहार रहता है। ना वह 360 डिग्री के चिंतन का सामर्थ्य रखता है ना ही उसे पाने का स्वप्न भी देख पाता है क्योंकि वह तो केवल अपने बनाए हुए लक्ष्यों को साधने में लगा रहता है।
गुरुदेव क्या चाहते हैं और गुरुदेव को पाने की आत्मिक आवाज आज के भौतिक वातावरण में कोई सुनना भी नहीं चाहता क्योंकि उसका मन मस्तिष्क तो सांसारिक झंझटों से आजाद ही नहीं है।
बस यही विडंबना है दुख जिसके लिए गुरु तत्व को समय का इंतजार करना पड़ता है।
आध्यात्मिक मार्ग पर पूरी तरह चाहे चले ना चले लेकिन दिक्षित हो कर कुछ भी चलता हो तो एक दिन उसे क्या करना चाहिए था उसका आभास हो जाता है। बस यह भाग्य की बात है कि आभास होने के बाद उसके पास चलने के लिए करने के लिए समय कितना शेष रहता है।
ज्ञान का सही अर्थ समझ में आकर जब चलना शुरू हो जाए वही सर्वोत्तम कर्म है बाकि सब पहले के भटकाव या सहायक चिंतन है।
सादर नमन।