गुरु शिष्य पर जब शक्तिपात करता है तो शिष्य के गुण धर्म और सहनशक्ति देख कर कितनी वो शक्ति को ग्रहण कर सकता है उसी के अनुसार उसके कर्म देख कर कम या ज्यादा प्रभाववाली शक्ति से शक्तिपात कर उसका हृदय क्षेत्र के पास अपनी ऊर्जा को दे कर उस स्थान को उर्जित कर देता है और प्रकाशवान कर देता है पिताजी को उनके गुरु के द्वारा प्रथम बार मे अपनी शक्ति दे कर पूर्ण कर दिया और इजाजत भी देदी की तुम इसका प्रयोग कर सकते है मेरी सोच के अनुसार ये शक्ति प्रथम दृस्टि में ही पूर्ण रूप से देदी गई कुछ में शक्तिपात उसके सहन के अनुसार की जाती है और कुछ में शक्तिपात से ऊर्जा कम दी जाती है ताकि शिष्य उसे सहन कर धीरे धीरे इस जन्म में उन्नति कर सके मुझे भी मेरी जीवन की एक ऐसी ही शक्तिपात की घटना याद है जब महात्मा सोहराब अली जो कि एक उच्च कोटि के सूफी संत यानी प्रेम भक्ति के योग में चलने वाले थे उन्होंने मुझे मात्र 13 वर्ष की आयु में शक्तिपात से ऊर्जा से उर्जित कर दिया था ओर शक्ति मुझमे जब्ज कर के मुझे वो अदुभुत नजारा आध्यात्मिकता का दिखा दिया जिससे पूरे शरीर ऊर्जावान हो कर अनहद धक धक ओर ऊर्जा का गमन पूरे शरीर मे महसूस करना शुरू हो गया और इस प्रभाव से मेरा जीवन बदल गया ओर मैं जो बीमार रहता था उस बीमारी का मेरे शरीर पर आज तक कोई नकारात्मक प्रभाव उतपन्न नही हुआ और न कोई विकार जो शरीर को नुकसान पहुचा सके
हम जानते है कि शक्तिपात के लिए गुरु का आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण ओर सामर्थ्यवान ओर इजाजत सूदा होना आवश्यक पर। कोई भि या अध्यत्मिक शक्षित गुरु किसी को शिष्य या अपना अनुयायी बनाता है तो उसे परख लेता है की वह इस राह पर चलने योग्य ओर शक्तिपात से दी गई ऊर्जा को बर्दाश्त भी कर सकता है या नही उसकी क्षमता को जॉच परख कर ही दिक्सित किया जाता है ओर उसे शक्तिपात से उतपन्नकोई भी शारिरिक , कमजोरी को गुड़ व चने का प्रसाद रूप में खिलाया जाता है जिससे कोई विकार उतपन्न न हो किन्तु शिष्य को इसके लिए किसी प्रकार की कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती है |गुरु ही यह देखता है की शिष्य की क्या क्षमता है ओर शिष्य में अक्षमता या पूर्ण तैयारी की आवश्यकता न होने पर भी शिष्य को शक्तिपात का अधिकारी होने के लिए कुछ मर्यादाएं निश्चित की गयी हैं , तभी उसपर शक्तिपात द्वारा शक्ति दी जाती है इसके लिए भी गुरु के द्वारा कुछ मर्यादा बनाई गई है जिससे शक्तिपात मात्र खेल बनकर न रह जाए |वह शिष्य जो इन्द्रियों को जीतने वाला ,ब्रह्मचारी ,गुरुभक्त हो वही इसका अधिकारी है |जो गुरु में पूर्ण निष्ठां ,विश्वास और श्रद्धा रखता हो तथा पूर्ण समर्पण कर दे गुरु इच्छा पर वास्तव में वही शक्तिपात का अधिकारी होता है |