जब आत्मा पवित्र हो जाती है तो वो दिखावे से दूर हो जाता है उसके लिए हर मौसम एक ही होता है और वो अपने हाल में अपने इष्ट की याद में लगा रहता है उसके लिए हर दिन दीवाली होती है ओर दुनियादारी से कोई लेना देना नही वो तो चाकरी अपने ईश्वर रूपी गुरु की करता है और जो वो देता है उसी को पा कर गुजर बसर करता है वो जानता है जो उसके पास है उसे कोई चुरा नही सकता पर अपनी इच्छा से वो बाट कर भी कुछ नही खोता बल्कि उसकी रकम बढने लगती है और जब इस जन्म में मन भटकता ओर कुछ पाने के लिए ऐसे संतो के पास जाता है जिनहोने अपने मन पर नियंत्रण कर अपने आप को अपने गुरु में मिला दिया है और उनमें ओर ईश्वर में भेद मिट गया और वो रूप जो अब नजर आ या है उसमें प्रकाश ही प्रकाश है और शरीर तप कर कुंदन ओर आत्मा का रंग सुनहरी हो गया है पर जब उससे हमारी मुलाकात होती है तो कहता है मैं जानता हूं तुमको यही आना है और इस जगह जो मस्ती है जो दीवानगी है और जो आतमियता है ओ आध्यात्मिकता है और जो उसकी मेहर है उसी में खो उस जैसा बन जाना है तभी तुम्हारी समझ में आएगा मैं वही हु जो वो है और जो वो है मेरी आत्मा में समाया मेरा ईश्वर रूपी सद्गुरु जिसकी तलाश तुझे है आ मुझमे समा जा