गुरु ज्ञान और योग और एकाग्रता व अध्यात्म का समुन्दर है यदि हम कोई कंकर को ले और उसे समुन्दर या तालाब या नदी में फैक दे तो हम देखते है वो कंकर जिसे हमने समुन्दर या नदी या तालाब में फैका है उसके फैकने से समुन्दर में एक तरंग उतपन्न होती है जो हमे समुन्दर में बहती सी नजर आती है और हम देखते है कि वो दूसरे किनारे पहुच समुन्दर में मिल जाती है ठीक इसी तरह से शिष्य है जब कोई शिष्य गुरु को गुरु बना कर उससे शिक्षा पाना चाहता गया तो गुरु उसके अंदर उयपन्न गुणों का अवलोकन कर अपना अनुयायी बना लेता है और खुद उसका पद प्रदर्शक हम जानते है कि जब शिष्य गुरु रूपी समुन्दर में गौता लगता है तो उसके भार से समुन्दर में तरेंगे उतपन्न हो समुन्दर की घेरती हुई दूसरे किनारे या समंदर के अंत के स्थान में मिल जाति है इसका अर्थ ये है कि गुरु शिष्य के प्रति समर्पित हो जाता है और शिष्य जे समर्पण भाव से प्रभावित हो उसे अपने मे समा लेता है और एक शरीर में उसे वो विद्या सीखा देता जो वो अपने गुरु से पा ता है इसी तरह से शिष्य जब गुरु की परछाई बन के उनके साथ साथ चलता है तो सूर्य की रोशनी में एक समय दोनों परछाई एक हो कर मिल।जाती है ये ही उद्देश्य शिष्य का होता है वो तो सिर्फ गुरु का अनुयायी है उसे तो गुरु के गुणोंको ग्रहण कर गुरु सम बन जाना होता है इसी शिक्षा की ग्रहण करने के लिएशिष्य गुरु के अधीन रहने लगता है