मनुष्य के शरीर के अंदर के विकार क्रोध लोभ मोह इर्ष्या द्वेष घमण्ड़ अहंकारवाले कर्म या संस्कार हमारे कमाए हुए पुण्य इस तरह से खत्म कर के हमे मिट्टी में मिला देते है जिस तरफ से लकड़ी के जलने के बाद जो शेष रहती है राख यानी सभी अच्छे कर्मों का विनास हो जाता है