सदगुरु कहते है के यह एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है के शिष्य गुरु के असली रूप को नही पहचान पाते । मनुष्य आज के युग में सिर्फ चकाचौंध की तरफ ही खींचता चला जाता है और उसे वही ठीक लगता है जहां चमक है सादगी से वह दूर रहता है ।
आज वह गुरु को भी इसी तरह देखने लगा है जिस गुरु के पास सबसे ज्यादा भीड़ और चमक उसी को सच्चा मानने लगा है जहां पे वह घंटो कतार में लगा रहे और फिर भी गुरु से न मिल पाए ।
जो असली गुरु है वह हमेशा सादगी पसंद होते है और शिष्य से मिलने को आतुर न तो वह शिष्य से कुछ चाहते है न किसी चीज की कामना करते है । यह हमारी आंख की कमजोरी है जो हम ऐसे गुरु को एक सामान्य मानव अपने जैसा समझ लेते है और वैसा ही व्यवहार उनके साथ करते है ।
यही आज के शिष्य की सबसे बड़ी कमी है ।
हम अपनी इस कमी को खत्म कर अपने गुरु का असली रूप देख उनके चरणों में समर्पण कर सकें और चकाचौंध की इस दुनिया से बच सकें ऐसी ही प्रार्थना करते है ।
सादर नमन ।।