आध्यात्मिक साधना के दौरान गुरु देव के शक्तिपात से शिष्य के हृदय क्षेत्र जाग्रत हो जाता है और एक धक धक की गूंज हृदय और उसके चारों तरफ फिर पूरे शरीर मे योग साधना से गूंजती हुई सुनाई देती है और गहन साधना पर ये शरीर के बाहर ब्रह्मांड में गूंजती या एक आवाज सुनाई देती है चुकी शरीर के चारो ओर रिक्त स्थान है जो आकाश है इस आकाश रूपी जगह में ये आवाज साधक को ध्यान की अवस्था या जाग्रत या सोते हुवे अपने शरीर के चारो तरफ गूंजती हुई सुनाई देती है ये आवाज यू तो 24 घंटे समाधि या समाधि से मुक्त अवस्था मे सुनाई देती है ये बीना बजाए आवाज हमे सुनाई देती है यानी इसके लिए हमे कोई क्रिया नही करनी होती ये ध्यान में बिना किसी परिश्रम किये सुनाई देती है जो एकाग्रता की उच्चता बताती है यानी वीतरागी सुरति तुरीयावस्था होती है ये आवाज हमे उस अवस्था मे ध्यान में सुनाई देती है जब हमारी भीतरी सफाई हो जाती है और मन शुद्ध हो एकाग्र हो जाता है और हमारा ध्यान बाहरी वस्तुओ से हट कर अंदर ईश्वर की तरफ लग जाता है सभी ध्यान और साधना पद्धतियों में मूल ध्यान में ये आवाज या नाद ओर बिंदु ही होते है जिसे हम हमारी भाषा मे नादब्रह्म कहते है जब कोई भी साधक गुरु कृपा की मेहर से उसे पा कर इसमे लय हो जाता है तब उसे ध्यान या जाग्रत अवस्था मे शरीर के अंदर ओर बाहर ब्रह्मांड में घटित होती नाद की आवाज घटित होती हुई सुनाई देती है और साधक को गुरु की मेहर से ऐसा लगता हैया उसे मन से प्रतीत की ये शरीर के घेरे से बाहर निकल कर एक आकार लिए सूक्ष्म।कणो ओर प्रकाश पुंज कि तरह से ब्रह्मण्ड में ऊपर की ओर जाती हुई नजरो से दिखती है या हमे इसे अपने चारों तरफ इसे महसूस करते है जिसका प्रत्यक्ष में अनुभव शरीर के बाहर एक दायरे में साधक को होता है और वह इसे खुली आंखों से देखा और कानो से बाहर गूंज रही आवाज को सुनता है और घटित होते हुवे महसूस करता हैइस ध्वनि का ध्यान अवस्थाया बैठे हुवे या सोते हुवे कही पर कभी भी बिना रुके स्पंदन का अहसास शरीर मे पूरे दिन रात होता रहता है ये स्पंदन अपना आध्यात्मिक प्रभाव मन और आत्मा पर डालते है और हमारी हर इंद्रीय अपने आध्यात्मिक और सांसारिक प्रभाव को मन और आत्मा तक ले।जाती है और उसका सात्विक प्रभाव हमारे शरीर और मन को शुद्ध करता है