परा –वाणी
लेखक
समर्थ सदगुरू महात्मा श्री रामचन्द्र जी महाराज
( श्री लालाजी महाराज )
(समर्थ सद्गुरु महात्मा श्री रामचंद्र जी महाराज द्वारा उर्दु में लिखित आध्यात्मिक लेखों का हिन्दी अनुवाद)
सुख की विभिन्न अवस्थाएँ
14-11-19 से आगे (((((भाग 41 ))))))
तीसरा तबका माद्दी और रूहानी है जिसमें बिल्कुल रूह माद्दा के गिलासों से ढकी हुई है और अपनी अपनी ताकत के इजहार के लिए माद्दी औजारों की मोहताज है । इस मुकाम में हुए इस कदर दब गई है कि बिना इंद्रियों के कुछ भी काम नहीं कर सकती । गिलासों की ज्यादती की वजह से उसकी ताकत बिल्कुल जातीरही है । उसको अपनी जात का इल्म भी नहीं रहा और अपनी असल और वतन को भूलकर संसारी बन गई । यहाँ जबरदस्त स्थूलता है । माद्दी जरूरतों की भरमार ने रूह को बिल्कुल मोहताज और भिखारी बना दिया है । इस तबके में रूह का जिस्मानी दिल और इंद्रियों के साथ लगाओ है जो माद्दी के मलिन हालत के प्रकट करना की हालत में है ।
संतो ने इस तबकात के निस्बती हालत के लिहाज से इनको छ: छ: हिस्सों में तक्सीम कर दिया है । यह तबका ( अवस्थाएं ) जिस तरह बाहरी रचना में हैं वैसे ही इंसान के कल्ब ( हृदय ) में भी हैं । इंसानी कब्ल को दुनिया के तमाम रूहानी मुअल्लमीन (आध्यात्मिक विद्या के पढ़ाने वाले ) ने छोटा ब्रह्मांड ( आलम सगीर ) का है ” पिंडे सो ब्रह्मांडे ” । हिंदुओं में यह आम मसला है और सारी कायनात को आलम कबीर कहते हैं और यूनानी फिलास्फर इसको मेक्रोकॉम कहते हैं और माइक्रोकोम का नाम देते हैं। उपनिषदों में भी जा बजा उसकी अहमियत पर जोर दिया गया है । इस एक बात की तमिल में बहुत बड़ी असलियत पोशीदा है । जिस पर हर इंसान को गौर करना चाहिए फिर उसके मानी यह है कि ब्रह्मांड में जिस कदर लतीफ ( सूक्ष्म ) और स्थूल वगैरह मुकामात हैं उन सब का नक्शा पूरी तौर पर उस इंसान की सूरत में मौजूद है और अगर वह चाहे तो जीते जी इस शरीर में रहकर कुछ निम्न और धर्म दरम्यानी स्तरों के सुख को रोक सकता है ।