अध्यात्म में सद्गुरु की मेहर से जब आत्मा जाग्रत हो जाती है और एक मुकाम पर ऐसा लगता कि ये जग मिथ्या है और इस जग से सारे रास्ते खत्म या न्यून हो कर इंसान अपने अंदर खो जाता है और जान जाता है कि ये जग सिर्फ मिथ्या है और सांसारिक मोह से ऊपर उठ गुरु में लय यानी अपने को ईश्वर की समर्पित कर देता है तभी वो उस मुकाम पर पहुचता है जिसे आत्म साक्षात्कार या स्वम् का बोध होना कहा गया है कि मैं कोंन हु कहा से आया और मेरी अंतिम मंजिल कोनसी है