मनुष्य का जन्म

मनुष्य का जन्म लेने के बाद जिस जीव  का मुख्य धेय्य  अध्यात्म  को प्राप्त करना और जीवन मुक्त होना होता है वह जीव घर को चुन कर जन्म।लेता है और कर्म।को।भुगत कर मुक्त होने के लिए कर्म।करता है कर्मो के भुगतान हो कर  इस  जीवन मुक्तता को पा ते है ये हर कोई जानता है कि  जीव को  पुनर्जन्म के संस्कार मातापिता  के गर्भ में ही प्राप्त हो जाते हैं।  ओर गर्भ काल मे जो कर्म मा व परिवार के सदस्य करते है  उसका प्रभाव  नैतिक तौर पर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है  और जन्म लेने के बादशिशु रूप में  परिवार के माहौल  ओर  संस्कार  का भी  उस के मस्तिष्क पर भी एक उचित प्रभाव पड़ता है जिससे उसमे संस्कारो ।का जन्म होता है और उन संस्कारो के अनुसार वह पल ता है और बड़ा होता है पर संस्कारो का प्रभाव यो।का यो उसके जीवन मे बना रहता है और इन संस्कारों  से ही उसका आगे  आने वाला जीवन गुजरता है  की वह किस वातावरण ने पल।रहा है और उसे क्या क्या सिखने  को मिल रहा है  घर के सदस्यों का  *परमात्मा व* उनकी मूर्ति में श्रद्धा, ईश्वरीय शक्ति में विश्वास,  सम्मान, बड़े व गुरुजनों के प्रति सम्मान आदि यह सब संस्कार अध्यात्म से बचपन में ही प्राप्त हो जाते हैं जब  और  बड़ा हो जाता है तो स्वाम में भौतिक और आध्यात्मिकता का  अनुभव भी करता हैं। हम।जानते है कि जीव का  अध्यात्म के द्वारा उस   व्यक्ति को अंदुरिणी  तौर पर   भीतर से आत्मविश्वास व मानसिक  बल मिलता हैं, व्यक्ति चाहे कैसा भी जीवन जी रहा हो, मन अशांत, व्याकुल या अस्थिर हो उसेमाता पिता और गुर के आध्यात्मिक और गृहस्थ धर्म के संदेश ओर जीवन मे गुजरे पल।का  अनुभव और जगत में जीवन जीने का  अनुभव  व अध्यात्म का सहारा मिल जाये तो जीवन की यात्रा और सुगम व सरल हो जाती हैं

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