नादब्रह्म 

जब किसी शिष्य को पूर्ण गुरु जो अध्यात्म की  उच्चतम  शिखर पर वीतरागी केवली स्तिथि में या  संत महात्मा  इनके पास नादब्रह्म  होती है  ये किसी भी  शिष्य को भाग्य सेइस जगत में  मिल जाते है और वो उसे अपना शिष्य बन कर अपनी शक्ति ऊर्जा पात के द्वारा उसके हृदय क्षेत्र को जाग्रत कर उनके द्वारा दी गई उच्च कोटि की ऊर्जा का रुख उर्धगति कर ऊपर की ओर मोड़ देते है और उनकी मेहर से तथा  शिष्य के कुछ समय के प्रयास के  बाद उसके शरीर के  हृदय  क्षेत्र और उसके पास के हिस्से में धक धक की आवाज सुनाई देने लगती है ये आवाज बिनाजब बिना  किसी अथक प्रयास के शिष्य को गुरु की रहमत से सुनाई देने लगती है और कुछ वर्षों की साधना के बाद ये आवाज शिष्य को धक ढक पूरे शरीर मे बिना किसी रुकावट के सुनाई देती है कुछ व्यक्तियों में  जिनके संस्कार पूर्व जन्म से ही इस आध्यात्मिक दुनिया में उच्च स्तर पर होते है उनको ये आवज जन्म।लेने के बाद माता पिता के संस्कार और उनकी शिक्षा से या घर मे आये किसी संत के या सत्संग में किसी संत की माध्यम  से  बाली अवस्था मे या युवा अवस्था के आस पास उसे ये अनाहद गुरु के आशीर्वाद सेया संस्कार से  मिल।जाती है और अकेले या पूजा में  इसे पूरे शरीर मे इस हरकत की महसूस करते है ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल मे उन्नति कर संत के पद पर या अध्यस्तमिक उच्चता के शिखर पर पहुच जाते है ओर अपनी योग्यता  से उनके पास आने वालों को भी ये अनाहद नाद बक्श देते है जिससे शिष्य आध्यात्मिक  उच्च स्तर पर पहुच जाता है और मुक्त ता पा लेता है उसे समझ मे आ जाती है कि मैं कोन  हु ओर मेरे अंत ओर अगली मंजिल।क्या  है येअनाहदआवाज  अग्नि ओर वायु तत्व कर मेल से सुनाई देती है चुकी शरीर मे खाली जगह भी है जिसे हमारी नजर में आकाश माना है ये खाली स्थान अंघुथे से लेकर मस्तिष्क तक होता है ये ब्रह्मनाद उसे  सहस्त्र चक्र तक सुनाई देती है ओर जो लोग अभ्यस्त ओरउच्चता की  अवस्था में। पहुच जाते है उनको ये आवाज शरीर के बाहर के दायरे में भी गूँजति हुई सुनाई देती है ओर एक तरह का उनका  पारदर्शी ओरा भी दिखाई देता है सूक्ष्म ऊर्जा के कणों से बना दिखाई देता है  अध्यात्म जिसे  शब्द-ब्रह्म कहते हैं.. यह शब्द या धक धक  ध्वनि नौ प्रकार की शास्त्रो के अनुसार होती है  . इसकोj सुनने का अभ्यास  ध्यान और समाधि की अवस्था  करना शब्द-ब्रह्म का ध्यान  में सुनना कहा गया है. यह धक धक  शब्द ब्रह्म न ॐकार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है मेरी दृष्टि में ये  अनाहत नाद हैअनाहत अर्थात बिना आघात के या बिना बजाये उत्पन्न होने वाला शब्द जो गुरु के द्वारा शक्तिपात से ही शिष्य को मिलता है कभि कभी घोर तपश्या भक्ति ध्यान समाधि ओर स्वाधाये  साधना से भी ये उतपन्न होती देखी गई है  इसका उच्चारण किये बिना ही ध्यान और समाधि की अवस्था मे अनुभव करना और  स्वम् में   चिंतन  करने से सुनाई देती है शुरू शुरू में ये आवाज न्यून होती है पर जैसे जैसे साधना में अभ्यास बढ़ता गया ये शुद्ध रूप से सुनाई देती है इसे शास्त्रो मेंनौ  तरह से घटीत  होती हुई  अनुभव होती है

१. घोष नाद २. कांस्य नाद . ३. श्रृंग नाद . ४. घंट नाद . ५. वीणा नाद  ६. वंशी नाद  ७. दुन्दुभी नाद  ८. शंख नाद  ९. मेघनाद  ये धक धक मुझे मेरे पिताजी  की कृपा से नगाड़े की आवाज की तरह से सुनाई देती है मेरे पास आने वाले को ओर मेरे गुरुदेव के आशीर्वाद से  विभिन्न तरह के स्वरआवाज  सुनाई देती है और प्रकाश दिखाई देता है

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