मेरे पिताजी

मेरे पिताजी जो कि एक सूफी संत हुवे उनको उनके गुरु महात्मा राधा मोहन लाल।जी आधोलिया  जो कि महात्मा रघुवर दयाल जी के पुत्र थे और महात्मा रघुवर दयाल जी महात्मा राम चन्द्र जी के छोटे भाई जो कि विलक्षण प्रतिभा थे उन्होंने पहली ही मुलाकात में पिताजी को वो तवज्जुह दी और पूर्ण कर कहा आज से मेरी गद्दी के मालिक हो और तुम्हे वो कार्य करने है जो मैं करता हुबयानी पूर्ण कृपा ओर इजाजत ओर रहमत पिताजी प्रेम और भक्ति मार्ग के चलने वाले गुरु और  हनुमान भक्त थे उनको 8 वर्ष की अवस्था मे हनुमानजी के दर्शन हो गए थे वो शुरू से ही  मनुष्य के रूप में ईश्वर हनुमानजी को मानते थे और उनके पूर्वजोंकी दी हुईहनुमानजी की मूर्ति की  350 वर्ष पूर्व की है कि पूजा करते औरसमाधि के अलावा रामायण और हनुमासन चालीसा  का स्मरण करते  थे

पिताजी के जीवित रहते हुवे उन्होंने एक आश्रम  बनाने की इच्छा जाहिर की थी और उसका नाम मेरी बहिन कमला गुप्ता को बताया था की उसका नाम सोहम होगा ये आश्रम के निर्माण के बाद मेरी बहिन ने मुझे बताया कि जो नाम तुमने रखा है ये पिताजी के खवाइश थी सोहम चेरिटेबल ट्रस्ट पहले बना और डॉक्टर आर पी गोयल साहब  ने बस्सी के निकट श्यामपुर में 3000 गज जमींनको खरीदना तय किया और उक्त। में से 600 गज जमींनपर सोहम ध्यान योग केंद्र जा निर्माण पिताजी की जन्म शताब्दी पर 12 फरवरी 2016 को निर्माण कार्य शुरू किया जो 17 अगस्त को पूर्ण हो उनकी निर्वाण तिथि पर भंडारे के साथ शुरुब हुआ  सोहम धाम नाम से जगह जानी जाती है

4 जून में984 पिताजी की शादी की सालगिरह पर शालनी के द्वारा एक भाई की मांग पर पिताजी ने मेरी पत्नी को एक गिलास जल।पीने को दिया और बोले 9 माह बाद तुम्हारे एक पुत्र होगा जो बुजुरगे खाबदान से आएगा और उसमें  बुजुर्गो के पूर्ण गुण होंगे जब अनीश 5 मॉर्च 85 को जन्म हुआ तो उसमें जो गुण मिले वो बुजुरगे संत परिवार के थे और आज भी है उसमें आध्यत्मिक योग्यता अनाहद ओर उसकी आध्यात्मिक सोच बहुत उच्च श्रेणी की है और उसे घटने वाली घटनाओं का आभास ओर उसमे अध्यात्मिक योग्यता पूर्ण रूप से झलकती है और हर भंडारा वो श्रद्धा निस्वार्थ प्रेम और हर दिन गुरु महाराज व पिताजी की नियमित ध्यान और पूजा करता है और परिवार व सत्संगियों का मान आदर भाव और निस्वार्थ सेवा करता है मेरे बाद वो ही इस कार्य को संभालेगा ओर मेरी नजरो में पात्र भी है

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