मेरी सोच
हमारे शरीर मे जहा हजारो नाड़ियो का जाल फैला हुआ पर आध्यात्मिकता में तीन नाड़ियो को प्रमुखता पाई गई है ये नाडिया जिनगी हम इड़ा पिंघला ओर सुष्मन्ना का नाम से हमारे शरीर मे स्तिथ होना व कार्यरत होना जानते है इन्ही के माध्यम से योग और आध्यात्मिक जीवन मे में पूर्णता प्राप्त होती है
इड़ा
इड़ा नाड़ी जो कि ऋणात्मक ऊर्जा रखती है या इसमे होती है ये शरीर के बाएं भाग में स्तिथ होना दर्शाती है और इसका उद्गम स्थल हमारे ज्ञान और शासत्रो के अनुसार मूलाधार के बाई तरफ से माना गया है चुकी इसे स्त्री प्रधान गुण वाला माना गया है इसलिए ये ऋणात्मक ऊर्जा होती है हिन्दू धर्म के अनुसार इसे हम मातृ शकती कहते है
पिंघला
पिंघला नाड़ी मूलाधार चक्र में दाई ओर स्तिथ होती है और ये घनात्मक प्रभाव रखती है इसमें पुरुष वरदान गुण पाए जाते है इसलिए इसे घणात्मक ऊर्जा माना गया है और ये पुरुष गुण को दर्शाती है
सुषम्ना
ये नाड़ी न्यून्ट्रल होती है इसका उद्गम स्थल इड़ा ओर पिंघला के मध्य मूलाधार चक्र से होता है और ये मूलाधार से शरीर के सभी अंगों में या शरीर मे स्तिथ चक्रो में गति कर सहस्त्र चक्र यानी मस्तिष्क के मध्य तक पहुच ती है इसके जाग्रत होने पर इंसान में शून्य ता व स्थिरता ओर वैराग्य उतपन्न होता है
शास्त्रो के अनुसार ये नाड़ी किसी भी योगी पुरुष जब ध्यान समाधि या योग में कार्यरत रहता है तब योग के माध्यम से सक्रिय होती है जब इड़ा पिंघला का कार्य निष्क्रिय या न्यून हो जाता है यानी स्वास की गति का कम होना या नईं होकर करीब करीब रुक जाना या कम हो जाना या हमे ये लगे कि हम स्वास नही ले रहे उस अवस्था मे जब नाक के दोनों छिद्र खुले होने पर ये सुषम्ना कार्यशील हो जाती है और स्वास गति लगभग न्यून होजाती है यदि हम दोनों छिद्रों को छुवे तो हमे लगता है कि जातक की स्वास की गति अत्यंत धीमी हो गई है ओर हमे अहसास ही नही होता कि हम स्वास ले रहा है या नही इस से योगी सुप्त अवस्था मे चला जाता है ओर लंबे समये तक समाधिस्थ अवस्था मे स्थिर रहता है
भगवान शिव की मेरी दृष्टि में अर्ध नारीश्वर इसलिए कहा गया है कि उनके दोनों सुर यानी इड़ा ओर पिंघला नाड़ी एक समय मे ही दोनो क्रियाशील रहती थे या जाग्रत अवस्था मे रहते थे चुकी महादेव स्वम अवतार या एक योगी थे इसलिए दोनों नाड़ियो के जाग्रत रहने पर भी उनके शरीर के अंदर की सुषम्ना नाडी हमेशा क्रियाशील जाग्रत रहती थी जो की चेतन अवस्था में थी ये नाड़ी चेतन अवस्था मे जब क्रियाशील अधिक होती है जब कोइ योगी साधना में समाधिस्थ रहता है और शिव हमेशा सनाधिस्थ ही रहते थे सुषम्ना के जाग्रत होने से योगी आध्यात्मिक उच्च स्तर प्राप्त करते है ये हम है इसीलिए दोनो नाड़ी जाग्रत होने पर उनको अर्धनारीश्वर कहा गया है
मेरा किसी भी इस्वर देव योगी या अन्य को क्रिटिसाइज करने का धेयय नही है न ही ऐसी गुस्ताखी मैं करना चाहूंगा