- दिनांक:: ०७ दिसम्बर २०२२
** क्या है हमारी “हैसियत”
या “औकात”?**
(अंक-३)
परम पूज्य श्री सद्गुरूदेव भगवान जी की असीम कृपा और उनके अमोघ आशीर्वाद से प्राप्त सुबोध के आधार पर, उन्हीं की सद्प्रेरणा से दिनांक ०५ दिसम्बर से प्रारम्भ की गई, उपर्युक्त अध्यात्म- विषयक, रोचक परिचर्चा के इस अंक-३ में आप सभी आदरणीय अध्यात्मप्रेमी महानुभावों एवं विदुषी देवियों का हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत है।
मानव समाज में हर व्यक्ति (चाहे वह महिला हो या पुरुष) अपनी “हैसियत” के प्रति बड़ा ही चौकन्ना रहा करता है।
लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि हमें अपनी असली “हैसियत” या “औकात” का जिन्दगी भर पता ही नहीं लग पाता!
यह हमारी “हैसियत” या “औकात” ही होती है, जिसके कारण हमें अपने घर पर, पास पड़ोस में, बाहर अपने कार्य- स्थल, इष्ट-मित्रों आदि के समाज में, सुखी-दु:खी, सम्मानित-
अपमानित, उत्तेजित-क्रोधित, हताश-उदास या अपेक्षित-उपेक्षित होते हुए अनुभव करना पड़ता है।
व्यक्ति की अपनी अथवा अन्य लोगों की “हैसियत” को आँकने के अनेक पैमाने हुआ करते हैं।
हमारी “हैसियत या औकात” के दो मुख्य भाग हुआ करते हैं- पहली – “बाहरी” और दूसरी- “भीतरी” ।
इन दोनों की संक्षिप्त विवेचना पिछले अंक-१ में की जा चुकी है।
पहली – “बाहरी हैसियत” की विस्तृत विवेचना भी पिछले अंक-२ में की जा चुकी है।
बड़ी से बड़ी भौतिक उपलब्धियोंवाली, व्यक्ति की जो “बाहरी हैसियत” से प्राप्त होनेवाली खुशी होती है और उसके जो परिणाम व्यक्ति को प्रायः भोगने को मिला करते हैं, उनकी चर्चा आज प्रस्तुत है:-
“बाहरी हैसियत” से प्राप्त खुशी के
सुखद और दु:खद परिणाम-
बाहरी हैसियत” से प्राप्त खुशी के जो सुखद और दु:खद परिणाम देखने में आया करते हैं, वे निम्नवत् हैं :-
(i) “बाहरी हैसियत” से प्राप्त खुशी से व्यक्ति को, एक “अल्पकालिक मानसिक सुख” संतोष एवं गर्व की अनुभूति होती है;
(ii) तत्पश्चात हर समय, अपनी “बाहरी हैसियत” की, उन सब उपलब्धियों की सुलभता की, उनके कारण, लोगों से अपनी प्रशंसा सुनने की तथा लोगों को स्वयं भी बड़े गर्व के साथ उन्हें सुनाने से होनेवाली खुशी की कामना हर समय बनी रहती है;
(iii) अपनी “बाहरी हैसियत” की उपलब्धियों को सुनने और सुनाने के अवसर आने पर, अपनी प्रतिष्ठा किये जाने से, व्यक्ति को बहुत बड़ी, परन्तु “क्षणिक प्रसन्नता” तो होती ही है, साथ ही उस समय उसकी गर्वभरी मुखमुद्रा देखते ही बनती है;
(iv) व्यक्ति को अपनी “बाहरी हैसियत” की उक्त उपलब्धियों की सुरक्षा एवं संवृद्धि की बहुत बड़ी चिंता हमेशा बनी रहती है;
(v) व्यक्ति को अपनी “बाहरी हैसियत” की उक्त उपलब्धियों के ह्रास का, चोरी का, डकैती का, लूट व विनाश का भय भी हर समय सताता रहता है;
(vi) “बाहरी हैसियत” की उपलब्धियों में थोड़ी सी भी कमी या उनका विनाश घटित होने पर अथवा दूसरे परिचित या अपरिचितजनों की उपलब्धियाँ, उससे अधिक होने पर, व्यक्ति को जो मानसिक तनाव होता है, उससे उसे रात-दिन की बेचैनी तो बढ़ती ही है साथ ही रक्तचाप, मधुमेह, हृदयाघात जैसी बीमारियाँ भी घेरने लगती हैं;
(vii) झूठ, बेईमानी व भृष्टाचार से प्राप्त उस अनावश्यक धन-संम्पदादि से बनी “बाहरी हैसियत” की उपलब्धियों के कारण, लोगों के ईर्ष्या-द्वेष से उत्पन्न अनावश्यक बैरभाव, प्रतिशोध, प्रतिस्पर्धा, लड़ाई- झगड़े, मुकद्दमे, मारकाट, विभिन्न न्यायालयों, पुलिस स्थानों में जी हजूरी, प्रताड़ना आदि के मामलों में भी उलझना व कभी- कभी सम्पदा की सरकारी कुड़की के साथ ही कैद में भी फँसना पड़ जाता है;
(viii) फिर वृद्धावस्था में स्वार्थी परिवारीजनों द्वारा उपेक्षा से होनेवाला अलगाव, अलगाव, अकेलापन, सम्पदा का संतान में बँटवारे के झगड़े, हताशा, निराशा व रोग- ग्रस्तता आदि की बिषम स्थितियों में इस “बाहरी हैसियत” की खुशी अपार मानसिक तनाव में समा जाती है; और-
(ix) “बाहरी हैसियत” की “क्षणिक खुशीवाली” इसी पूँजी को छोड़ कर, किसी भी समय, व्यक्ति का रोग से या दुर्घटना से या आत्महत्या या हत्या से, मृत्यु के गाल में जा समाना होता है।
यही तो कम या अधिक हैं ना, हमारी तथाकथित शानदार “बाहरी हैसियत व औकात” के लक्षण और उसके सुखद और दुःखद दुष्परिणाम!
मानव की “भीतरी हैसियत” के लक्षणों व परिणामों पर विस्तृत चर्चा अगले अंकों में…..।
सादर,
**ॐ श्री सदगुरवे
परमात्मने नमो नमः**