चेतना और साधना

चेतना और साधना

हम जिस प्रकार सोच और महसूस कर रहे हैं उससे केवल निरन्तर बंधन का जाल निर्मित किए जा रहे हैं। वे सारी बातें जिन्हें  हम सोचते और महसूस करते हैं तथा स्वयं के बीच जब एक दूरी बनाने लगते हैं तो इसे ही हम चेतना कहते हैं। जिसे हम साधना कह रहे हैं वह एक अवसर है अपनी ऊर्जा को बढ़ाने का ताकि हम अपनी सीमाओं और सभी खामियों पर नियंत्रण रख सकें जिनके कारण हम अपने विचारों और भावनाओं में उलझ गए हैं।

साधना और चेतना : कृपा के लिए करती हैं तैयार

अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में पर्याप्त चेतना प्राप्त कर लेता है, और निरंतर किसी साधना का अभ्यास करता है तो उसका यह पात्र धीरे-धीरे पूर्णतः खाली हो जाता है। चेतना पात्र को खाली करती है, साधना पात्र को साफ करती है।

जिसे हम साधना कह रहे हैं वह एक अवसर है अपनी ऊर्जा को बढ़ाने का ताकि आप अपनी सीमाओं और सभी खामियों पर नियंत्रण रख सकें जिनके कारण आप अपने विचारों और भावनाओं में उलझ गए हैं।

जब आप इन दोनों पहलुओं का अपने जीवन में पालन करते हैं, जब दीर्घकाल तक चेतना और साधना का पालन एवं अभ्यास करते हैं, तो आपका यह पात्र खाली हो जाता है। जब आपके जीवन में यह खालीपन, रिक्तता, यह शून्यता घटित होती है, केवल तभी आप पर कृपा अवतरित होती है। वास्तव में कृपा के बिना कोई कहीं भी नहीं पहुँचता। अगर आप कृपा का अनुभव करना चाहते हैं, तो आपको रिक्त होना होगा, आपको अपने पात्र को पूरी तरह खाली करना होगा। अगर आप एक गुरु के साथ रह कर केवल उसके शब्दों का संग्रह कर रहे हैं, तो आपका जीवन उस चींटी से ज़्यादा निरर्थक है जो शीत ऋतु या वर्षा ऋतु के लिए भोजन का संग्रह करती है।

बिना कृपा बहुत प्रतीक्षा करनी होगी

अगर हम कृपा का अनुभव नहीं करते, खुद को कृपा ग्रहण करने योग्य नहीं बनाते, कृपा को धारण करने के लिए खुद को रिक्त नहीं करते तो समझ लीजिए कि आपको कई जन्मों तक आध्यात्मिक पथ पर चलना पड़ेगा। आपके अन्दर यही मानसिकता घर कर गई है कि जहाँ भी जाओ वहाँ उतना संग्रह कर लो जितना कर सकते हो।लेकिन अगर आपने कृपा प्राप्त करने के लिए स्वयं को पर्याप्त रूप से रिक्त कर लिया है तो आपकी परम प्रकृति बहुत दूर नहीं है।यहीं पर उसका अनुभव करना है, यहीं पर उसका साक्षात्कार करना है। अस्तित्व के सभी आयामों से पार जाने पर हम परमानन्द अवस्था में प्रवेश करते हैं। यह आने वाले कल या किसी अन्य जन्म की बात नहीं है। यह एक जीवंत वास्तविकता है।

खुद को खो देना होगा

अगर आप छलांग लगाना चाहते हैं, रेखा को लांघना चाहते हैं और चेतना को कायम रखने के संघर्ष से बचना चाहते हैं तो आपको निश्छल होना होगा। आपको इतना निश्छल होना होगा कि आप सहजतापूर्वक खुद को पूर्ण रूप से समर्पित कर सकें। यह कोई ऐसा काम़ नहीं है जिसे आप कर सकें। आपको तो बस यह स्वीकृति देनी है ताकि यह स्वतः घटित हो सके। समर्पण कोई ऐसा कार्य नहीं है जो आपको करना है, समर्पण वह चीज़ है जो स्वतः तब होता है जब आप नहीं होते हैं। जब आप अपनी सारी इच्छाओं को खो देते हैं, जब आपकी अपनी कोई इच्छा नहीं रह जाती, जब आप इसके लिए पूर्णतः तैयार हो जाते हैं कि आपके अंदर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे आप अपना कह सकें तब यही वह समय है जब आप पर कृपा अवतरित होगी।

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