आज फिर मन के रूप लिए

आज फिर मन के रूप लिए आईने में

अपने को देखा तो लगा अंदर ही अंदर

मैं परेशान ही कुछ  चिंतित पर घबराया हुआ हूं

की जो मैं कर रहा हु वो सही भी है या  नही

यो ही इस जग में उसको तलाश रहा हु

जानता हूं वो इस जग में गुरुओ के अंदर समाया रहता है 

ओर काम क्रोध लोभ मोह अहंकार द्वेष मद द्वेष  जैसे

विकार मिट कर दूर होते है ओर गुरु देव के आशीर्वाद  से  शरीर मे प्रेम भक्ति ज्ञान

ध्यान और समाधि के बीज उतपन्न हो मन एकाग्र हो जाता है और गुरु देव के शक्तिपात से ऊर्जा हृदय।

क्षेत्र से उर्ध्व गति कर जब अनाहद  रूप में सशरीर में सुनाई धक धक धक रूप में गूंजने लगती  है।

तब संसार से नाता खत्म हो उस गुरु रूपी ईश्वर से नाता जुड़ जाता है 

तब इंसान के मन मे एक ही विचार रह जाता ह जानता हूं जन्म।लिए है तो

प्रारब्ध भी भुगतने  होंगे

जब भुगतान हो जाएगा तो मुक्त हो उस रब से मिलना होगा 

हा हा  वही रह कर ओर कर्म करने होंगे 

फिर जन्म ले उसी के चरणों मे रमना होगा

हा उसी लोक में रहना होगा प्रलय तक

हा हा प्रलय तक

एहि विचार अभी मन मे चल रहे थे

अपने दोष ही मुझमे अगणित नजर आरहे थे

सोच रहा था जानता हूं हु उसकी शरण मे

फिर ये  दोष दूर कैसे होंगे

अभी ये विचार चल रहे थे मन मस्तिष्क और आत्मा में

तभी आत्मा ने झंजजोर कर कहा 

एक ही इलाज है अब तेरे पास

गुरु चरणों मे समर्पित हो तुझे

अपने ऐबो पर नियंत्रण करना होगा

मिट जाएंगे जब दोष तभी तेरा

कल्याण गुरु के चरणों ने होगा

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