जब भी अकेला बैठता हु

जब भी अकेला बैठता हु

 तो एक अजीब सी गंध जो फूलो की

नही नहीं किसी इत्र की होती है 

उसका अहसास मुझे होता है की

 मैं उसमे घिरा हुवा बैठा  हु 

ओर वो  गंध मुझे आकर्षित कर 

कह रही  होती है  कि लो

तुमने मुझे याद किया मैं अपने

 कारण शरीर को लिए आगया ओर

अपनी पहचान लिए  मेरी खुशबू 

जो गंध  है लिए  तुम्हारे करीब 

आ गया और तुममे रम कर

 अपने होने का अहसास दिला दिया 

जानते हों तुम शायद तुम्हे मालूम नही

की गुरु देव जब भी मेरे नजदीक आते थे

 तो घर केतकी  या चमेलीया मोगरा  की

सुगन्ध से महक जाता था ओर जब बड़े हजूर आते तो

उनके मौजूद होने का

अहसास हिना की गंध का  मुझे होता था हा 

मेरा आना भी तुम्हे गुलाब की सुगन्ध के जैसा  होगा 

जानते हो मैं क्यों आता हूं क्योकि

 शिष्य ओर गुरु की आत्मा  ही

नही शरीर भी एक ही होता है

जो सोचता है शिष्य उसका

अहसास गुरु को तुरंत होता है 

जानते हो मैं क्यों आता हूं क्योकि 

अगर शिष्य अधूरा है तो गुरु पूर्ण कैसे होंगे

इसी पूर्णता को पूर्ण करने के  लिए मैं उस जंहा से

इस जहा में आता हूं 

तुम्हे अहसास हो मेरे आने का इसलिए 

चारो तरफ गुलाब की।महक बिखेर  जाता हूं

हा  जो तुम्हे गंध महसूस होती है

ये मेरे आने की ओर तवज्जुह देने की होती है

हो जाओ तुम  तैयार मेरी तववजुह पाने के लिए

इसीलिए गुलाब की खशबू की आहट पहले सेही  आ जाती  है

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