साधक

जरूरी नही की साधक हर रोज ध्यान करे

बल्कि गुरु की मेहर  ऐसी होनी चाहिए कि नियमित उसका ध्यान होता रहे

जब साधक को साधना में स्वम् के  शरीर का भी भान न रहे और गुरु की कृपा से उसे  परमात्मा का ज्ञान हो जाये की परमात्मा क्या है और उस तक समाधि के द्वारा ही पहुचा जा सकता है प्रेम ज्ञान भक्ति और ध्यान की परिकस्था पर पहुच गुरु के द्वारा दीक्षा के माध्यम से ही शिष्य समाधि की चरम अवस्था मे पहुचता जहा न जाप न तप न भक्ति यदि कुछ है तो सिर्फ उसकी याद स्मरण ओर समर्पित पना यदि कोई भी शिष्य  ऐसी अवस्था में पहुच कर  मन जहाँ जहाँ भी  गुरु भक्ति में 7जाएगा वहीं वहीं समाधि है ।ये  समाधि आपमें कहीं बाहर से नही आएगी, यह गुरु देव की कृपा ओर मेहर से  यह आपके अंदर ही घटित होगी । यह समायातीत है जिसे मोक्ष या निर्वाण भी कहा जा सकता है । बोद्ध धर्म में इसे निर्वाण तथा जैन धर्म में इसे कैवल्य कहा जाता है ।

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