कर्मो का भुगतना

मेरे पिताजी जो कि एक उच्च कोटि के मेरे परिवार में प्रथम संत हुवे है उनका कहना था कि म्रत्यु के बाद सूक्ष्म शरीर को प्रारब्ध के अनुसार कर्मो का भुगतना  होता है और उसके लिए उसे म्रत्यु के बाद फिर से स्थूल शरीर धारण  कर किसी कुल में जन्म ले कर अपने पूर्व  प्रारब्ध को इस जीवन मे भुगतना होता  है यदि स्थूल शरीर जन्म।लेने के बाद किसी उच्च कोटि के फ़क़ीर यानी महात्मा संत की शरण मे शरणा गत हो कर समर्पित भाव से  गुरु या माता पिता जो संस्कारिक हो उनकी शरण मे रह कर आध्यात्मिक ज्ञान से प्राप्त साधना करता है

जिसमे भक्ति ज्ञान ध्यान  शास्त्रो का अधतन व मनन ओर समाधि में रत रहता है और गुरु के कहे अनुसार समर्पित भाव से गुरु व स्वम् के परिवार की निष्काम सेवा करता है उसका  गुरु किसी भी जन्म में कभी भी अपना साथ नही छोड़ते  है और गुरु  अपने गुरु यानी ईश्वर से उसके प्रारब्ध जोभोगने है उनका  भुगतान के लिए कर्म  के  अनुसार भुगतान से  रह गए है उनको माफ करवा कर अपने साथ स्वर्ग यानी सतलोक ले जाता है यानी जो व्यक्ति गुरु की सेवा समर्पित भाव से करता है  गुरु उसे सतलोक अपने साथ ले जाता है या उसका अधिकारी बना देता है इसलिए शिष्य को स्वामी भक्त अपने  गुरु  या माता पिता काहोना  जरूरी है उनके एक आशीर्वाद से जन्म जन्म के पाप कर्म  दूर हो जाते है या उनका भुगतान इस जीवन मे न्यून हो जाते है और शिष्य बिना कस्ट के उसको  भुगतान  कर  स्वर्ग में  जाते हैऔर नये प्रारब्ध स्वार्थ विहीन होने से सतलोक में जाने के अधिकार  उसके  बन जाते है

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