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शिष्य यदि अज्ञानी हो — तो भी वह सच्चे हृदय से सद्गुरु की तलाश कर सकता है। ज्ञान की शुरुआत ही जिज्ञासा और विनम्रता...

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जब कोई महात्मा या सद्गुरु अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा शिष्य के शरीर, मन और आत्मा के हर कण में अपनी ऊर्जा का संचार करता है, तो शिष्य एक अनहद (असीम और अवर्णनीय) अनुभव में प्रवेश करता है। यह अनुभव सामान्य इंद्रियों की सीमा से परे होता है। यदि शिष्य इस अवस्था को पहचान कर पूर्ण समर्पण भाव से अपने गुरु के चरणों में अर्पित हो जाए, तो वह पूर्णता (आत्मिक सिद्धि या मोक्ष) की ओर अग्रसर हो जाता है।

इस मार्ग में आगे बढ़ने के लिए शिष्य में सत्यनिष्ठा (सत्य के प्रति दृढ़ता), समर्पण, समभाव (सबके प्रति समान दृष्टि) और सम्यकता (सही दृष्टिकोण...

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“समर्पण भाव लिए सब भाग रहे गुरु की ओर,जो भेद समर्पण को जान गया पत्नी से, वो सच्चा गुरु सेवक भाई।” भावार्थ: “समर्पण भाव...

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“गरीब असत कमलदल—बाह्य भी शून्य, अंतर्मन भी शून्य।” यहाँ “गरीब असत कमलदल” का अर्थ है वह कमल-पत्र जो न तो असली (सत्) है और...

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