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उच्च समाधि

कब गुरु द्वारा दी गई ऊर्जा से उतपन्न प्रकाश या  शब्द  का आभाष ही साधक को न रहे  यदि  साधक ध्यान करते करते ऐसी...

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ब्रह्मज्ञान

हृदय कलम तै जोति बिराजै । अनहदनाद निरंतर बाजै ब्रह्म को अपने घट के भीतर ही जानना, उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार करना- ब्रह्मज्ञान

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नाद का अर्थ

नाद अर्थात ‘नकार’ यानी प्राण (वायु) वाचक तथा ‘दकार’ अग्नि वाचक है , अतः जो वायु और अग्नि के संबंध (योग) से उत्पन्न होता...

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गुरु वह पुल है…

हम जानते है कि आध्यात्मिकताकी शिक्षा  में गुरु वह पुल है या सेतु है जो शिष्य को  अपने ज्ञान से ईश्वर से जोड़ता है और...

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