ब्रह्मज्ञान

हृदय कलम तै जोति बिराजै । अनहदनाद निरंतर बाजै

ब्रह्म को अपने घट के भीतर ही जानना, उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार करना- ब्रह्मज्ञान

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