निर्विचार ध्यान: मन को शून्य करने का अभ्यास। साक्षी भाव का अभ्यास: विचारों और भावनाओं को बिना जुड़ाव के देखना। आत्मविचार (Self-Inquiry): “मैं कौन...
अहंकार शून्यता वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति “मैं” और “मेरा” की भावना से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। यह अद्वैत वेदांत और योग...
पूर्ण वैराग्य तब संभव है जब इंसान संसार के सुख-दुःख, सफलता-असफलता, और रिश्तों के बंधनों से ऊपर उठकर समभाव में स्थित हो जाए। इसके...
आध्यात्मिक दृष्टिकोण में, “वाहित शरीर” (या “वायुमय शरीर”) उस सूक्ष्म शरीर को कहा जाता है जो हमारे प्राण (जीवन ऊर्जा) और मन के संकल्पों...
अध्यात्म में जब कोई शिष्य किसी संत के पास जाता है और उसे कृपा का अनुभव होता है, जैसे ठंडी सांस या शांति महसूस...
उन्हें किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से लगाव या घृणा नहीं होती। वे सुख-दुख में समान रहते हैं और बाहरी परिस्थितियों से अप्रभावित...
एक उच्च कोटि के आध्यात्मिक संत के जीवन में सम्पूर्ण वैराग्य और पूर्ण रूप से समाधि की अवस्था तब आती है जब वे आत्म-साक्षात्कार...
इंसान सुख व दुख पाता है अपने किये कर्मो के फल से हे मानव जब तू आ गया है इस संसार मे तो कर्मो...
विरक्ति का अर्थ है संसार और उसकी वस्तुओं से मन का हट जाना, मोह-माया से ऊपर उठकर ईश्वर या आत्म-साक्षात्कार की ओर उन्मुख होना।...
भारतीय दर्शन और योग शास्त्रों में शरीर को ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती नाड़ियों के रूप में मौजूद...