दर पे तेरे

दर पे तेरे आ के न जाने क्यों

अपने आप शीश झुक जाता है

देख कर दिल को  चैन ओर

मन शांत हो जाता है 

तेरे दर पर ये दीवाना जब बैठ

जाता है

खो जाता है  में उन

ख्यालो

में बस मुझे गुरु देव तेरा ही

रुप नजर आता है

जानता हूं ये हकीकत है कि

तू ही तू नजर आता है

जिसे कहते है एकाग्रता हा

वही दृश्य मेरी नजर में बन जाता है

ओर ये ही सोचते सोचते जब आंखे खुलती है तो

तू सामने होता है और मैं

ध्यान में मस्त होता हूं 

जान गया बिना मेहर के ऐसा

होता नही है 

ये तेरी ही मेहर है जो तूने मुझे

अपने चरणों मे जगह दे रखी है

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