ध्यान

पूज्य गुरुदेव ध्यान धारणा और समाधि के बारे में समझते हुए कहते हैं के ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका अभ्यास होने पर व्यक्ति अपने अंदर उतर के अपने इन तीनों शरीरों को जान सकता है और इनके अंदर उतर सकता है । यह सिर्फ ध्यान से ही संभव है ।

जब व्यक्ति ध्यान का अभ्यास करता है तब धीरे धीरे वह गहराई में उतरता जाता है और अपने शरीरों को काबू करना जान लेता है परंतु जैसे ही ध्यान का अभ्यास काम होता जाता है तो उसका एक एक करके उकसा ध्यान हल्का होता जाता है और वह एक एक करके शरीर उसके काबू से निकलते जाते है और वह फिर से उस स्तर पर आ जाता है जैसे बाकी सब आम इंसान है ।

ध्यान की उच्चतम स्थिति को स्थाई बनाने को धारणा कहते है । एक बार धारणा की स्थिति आने पर फिर अभ्यास कम होने पर भी ध्यान में कमी नही आती और व्यक्ति जन्मों जन्मों तक उस स्थिति में रहता है । धारणा की स्थिति पाने के लिए उसको गुरु की आवश्यकता होती है उनके बिना यह हासिल नहीं हो सकती । जब शिष्य ध्यान की उच्चता पे आने के बाद गुरु को समर्पण कर दे तब गुरु उसे अपने तप की ऊर्जा से यह स्थिति प्रदान करते है और शिष्य में धरना उत्पन्न हो जाती है ।

हम इस लायक बन सके के गुरुदेव हमको इस मुकाम पे ला सकें ऐसी ही प्रार्थना करता हूं ।

 

सादर नमन ।।

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