dhyaan

पतंजलि योगसूत्र योग दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे महर्षि पतंजलि ने रचा है। इसमें योग को आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। पतंजलि ने योग को “चित्तवृत्ति निरोधः” (मन की चंचलता को रोकना) के रूप में परिभाषित किया है।

पतंजलि योग के आठ अंग (अष्टांग योग) बताए गए हैं:

  1. यम: सामाजिक अनुशासन और नैतिकता के पाँच नियम:

अहिंसा (हिंसा न करना)

सत्य (सच बोलना)

अस्तेय (चोरी न करना)

ब्रह्मचर्य (संयम)

अपरिग्रह (अधिक संग्रह न करना)

  1. नियम: व्यक्तिगत अनुशासन के पाँच नियम:

शौच (शारीरिक और मानसिक शुद्धि)

संतोष (संतुष्टि)

तप (संयम और आत्मनियंत्रण)

स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन)

ईश्वर प्राणिधान (ईश्वर में श्रद्धा और समर्पण)

  1. आसन: शरीर को स्थिर और सहज स्थिति में रखने के लिए योगासन।
  2. प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास के नियंत्रण द्वारा प्राण (जीवन शक्ति) को नियंत्रित करना।
  3. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर अंतर्मुख करना।
  4. धारणा: मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना।
  5. ध्यान: लगातार और निरंतर ध्यान की अवस्था।
  6. समाधि: आत्मसाक्षात्कार की अवस्था, जिसमें योगी आत्मा और परमात्मा के एकत्व का अनुभव करता है।

पतंजलि योगसूत्र में मानसिक शांति, आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष के मार्ग को विस्तार से समझाया गया है।पतंजलि योगसूत्र योग दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे महर्षि पतंजलि ने रचा है। इसमें योग को आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। पतंजलि ने योग को “चित्तवृत्ति निरोधः” (मन की चंचलता को रोकना) के रूप में परिभाषित किया है।

पतंजलि योग के आठ अंग (अष्टांग योग) बताए गए हैं:

1. यम: सामाजिक अनुशासन और नैतिकता के पाँच नियम:

अहिंसा (हिंसा न करना)

सत्य (सच बोलना)

अस्तेय (चोरी न करना)

ब्रह्मचर्य (संयम)

अपरिग्रह (अधिक संग्रह न करना)



2. नियम: व्यक्तिगत अनुशासन के पाँच नियम:

शौच (शारीरिक और मानसिक शुद्धि)

संतोष (संतुष्टि)

तप (संयम और आत्मनियंत्रण)

स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन)

ईश्वर प्राणिधान (ईश्वर में श्रद्धा और समर्पण)



3. आसन: शरीर को स्थिर और सहज स्थिति में रखने के लिए योगासन।


4. प्राणायाम: श्वास-प्रश्वास के नियंत्रण द्वारा प्राण (जीवन शक्ति) को नियंत्रित करना।


5. प्रत्याहार: इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर अंतर्मुख करना।


6. धारणा: मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना।


7. ध्यान: लगातार और निरंतर ध्यान की अवस्था।


8. समाधि: आत्मसाक्षात्कार की अवस्था, जिसमें योगी आत्मा और परमात्मा के एकत्व का अनुभव करता है।



पतंजलि योगसूत्र में मानसिक शांति, आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष के मार्ग को विस्तार से समझाया गया है।

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