ध्यान का मतलब

ध्यान का मतलब उसका (गुरु) का ख्याल !

हम ध्यान अपने गुरु कि बताई विधि से करते है और श्रद्धा भाव से सतत प्रयास करते है किंतु ध्यान तो *वो* कराता है हम तो बस उसकी और लौ लगाते है ! ध्यान शरीरी नही अपितु *रूहानी* होता है !

बाउजी महाराज फरमाते है कि जीवन मे उनके पीरोमुर्शिदआदरणीय समर्थ सद्गुरु ठाकुर श्री राम सिंह जी महाराज ने उन्हें केवल *दो* बार  गहरा ध्यान कराया ! बाउजी महाराज ने स्वयं मुझे एक बार बहुत ही गहरा ध्यान कराया जिसमे आधे घंटे तक मे बेसुध हो गया ! उनके लिए तो एज बार ही तवज्जो देना सबकुछ है ! 

यहाँ इस को लिखने का उद्देश्य मात्र इतना है कि हम जीवन भर ध्यान धारणा करते है, ध्यान कि कोशिश करते है मगर जरूरी नही की हमारा ध्यान हमेशा ही लगे किन्तु सतत सदैव  प्रयासरत रहना चाहिए !

वैसे तो गुरु महाराज फरमाते है कि *गुरु भगवान का ख्याल मात्र ही ध्यान है !*

मेरी सोच के अनुसार कोई भी गुरु गहरा  ध्यान या पूर्ण तववजुह शिष्य को जब देतेहै तो ये देख लेते है कि शिष्य काबिल है भी या नही अगर काबिल है तो उसे अपनी पूर्ण तववजुह दे कर उसे काबिल बना देते है और अपनी शक्ति अपने शक्तिपात के द्वारा उसे दे कर उसे उर्जा वान कर देते है ये तवज्जुह स्थिर होती है एक बार देने के बाद ककी भी गुरु उसे पुनः वापस नही लेता है मुझे याद है 1963 में महात्मा सोहराब अली जो कि एक सूफी उच्च कोटि के संत थे अफगानिस्तान से जयपुर आये हुवे थे उनकी कृपा भी मुझे इसी तरह से मिली थी और इतना गहरी उन्होंने तववजुह दी थी कि मुझे 7 दिन नार्मल होने में लगे थे और उस तववजुह के कारण ही मुझमे आध्यात्मिक संस्कार उतपन्न हुवे ओर आज उनके द्वारा दी हुइ तवज्जुह से  मैं इस राह में चल रहा हु इसके अलावा पिताजी व अन्य संतो ने भी मुझे उच्च कोटि की तवज्जुह दी जिससे संस्कार बने और मैं काबिल ओर इस कबिलता ने ही उनके नाम की धरोवर मुझसे बनवाई जिसे हमने नाम दिया है सोहम ध्यान योग केंद्र जो।माता पिता और गुरु देव को समर्पित है ये सब मेरे पिताजी ओर गुरुओ के आशीर्वाद से हुवा है

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