पिताजी साहब जब भी ध्यान में लय रहते ओर ध्यान की उच्च अवस्था मे वो गुरु में लय रहते थे तो उनके शरीर से एक अदभुत ऊर्जा के निकलने का आभास उनके पास आने वाले सत्संगी को होता था उनका कहना था कि ये ऊर्जा यू ही नही किसी भी शरीर मे पैदा होती है जबकि ये ऊर्जा आज हर जगह मौजूद है पर अन्यो को नजर नही आती क्योकि ये गुरु के द्वारा बक्शी गई होती है और ये ऊर्जा तब ही नजर आती है जब गुरु अपनी नज़र से शक्तिपात कर शिष्य के दिल को ऊर्जा देकर जिंदा दिल यानी शिष्य के हृदय को अपनी ऊर्जा से ऊर्जावान कर जाग्रत कर देता है ओर ऊर्जा जा मुख उर्धगति कर देता है जिससे शिष्य का रोम रोम ऊर्जा से ऊर्जावान हो कर ध्यान की स्तिथि में उसे आभास होने लगता है कि उसके शरीर मे ककीन्हलचल हो रही है जो रोम रोम में हरकत कर रही होती है उनका कहना था कि जिस व्यक्ति का दिल जाग्रत नही होता उसे इस ऊर्जा का कभी आभाष नही हो ता है ये ऊर्जा तभी किसी के दिल मे पैदा होती है जब वह काम क्रोध लोभ मोह अहंकार द्वेष जलन और इर्ष्या जैसे विकारो से रहित नही होगा और उसका दिल सत्य पर अडिग ओर पाक साफ नही होगा यानी विकार रहित हो कर वह आध्यात्मिकता से जिसमे प्रेम भक्ति ज्ञान ध्यान और समाधि का महत्व है इसे ही जीवन मे अपना कर उसका दिल ऊर्जा से जाग्रत हो सकता है इसके लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो अपनी ऊर्जा से अन्य के दिल।को जाग्रत कर रोशन कर सके