गुरुदेव कहते है के गुरु के लिए एक बड़ी विडंबना है के शिष्य यह नहीं जान पाता के गुरु ने उसके जीवन में से कितनी परेशानीय कठनाइयाँ कम कर दी है । शिष्य अपनी परेशानियों से परेशान होके गुरु के पास आता है और चाहता है के उसकी परेशानियाँ कम हो और ख़त्म हो जाये इसके लिए वह गुरु से प्रार्थना करता है पर वह यह नहीं जान पता के गुरु ने तो उस परेशानी के आने से पहले ही उसको बहुत कम कर दिया है । जहां सज़ा फाँसी की थी वह एक सुई चुभाने जितनी कर दी है । और जब शिष्य नहीं जान पाता तो उसे लगता है के गुरुदेव ने उनके लिए कुछ नहीं किया और मन से थोड़ा सा कट जाता है । यह गुरु के लिए बहुत दुख दायी होता है क्योंकि शिष्य की परेशानियाँ तो वह स्वयं भोगते है और शिष्य को कम भोगनी पड़ती है फिर भी शिष्य के मन में गुरु के प्रति विश्वास कम हो जाता है ।
यहाँ शिष्य को चाहिए के वह गुरु पे अटूट विश्वास रखे के जब उसने गुरुदेव से अपनी परेशानी कह दी है तो गुरुदेव स्वयं जो हो सकेगा करेंगे और ऐसा ही अटूट विश्वास हम करें ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ ।
सादर नमन ।।