एक घटना ओर मैं लिखना चाहूंगा
ये घटना 1995 की है मैं मालवीय नगर के मकान में रहने लगा था मेरे पास लूना थी पाँव में ताकत ओर शारिरिक कमियों के कारण मुझे साइकिल की जगह लूना मेरे पिता ने दिलवा दी थी एक दिन लूना के टायर पेंचर हो गई और मुझे। साइकिल पर वित्त भवन मेरे आफिस जाना था 9 बजे घर से निकल गया अभी बड़ी मुश्किल से टोक रोड पर पहुचा ही था कि हिम्मत ने जवाब दे दिया साइकिल चलाना मुश्किल हो गया ऑर मन ही मन गुरु देव को सहायता के लिए याद करना शुरू कर मुश्किल से आगे बढ़ रहा था तभी एक सज्जन जो कि मोटर साइकिल पर थे उन्होंने कहा क्यो परेशान हो रहे हो लो।पकड़ो मेरा कंधा ओर मैं तुम्हे जहा जा रहे हो पहुचा दूंगा उनका कंधा पकड़ मैं आफिस पहुच गया और उनको बिना धन्येवाद दिए अंदर जाने लगा पर तभी मैंने उनको धन्येवाद देने के लिय पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नही था मन ही मन गुरु देव का सक्रिय दे आफिस में अपने कमरे में जा कर सोचने लगा कि ये क्या हुआ।