आपने अकाट्य सच लिखा है एक गुरु के पास गुरु का आशीर्वाद ओर स्वम् का भक्ति का योग होता है जो वास्तव में गुरु भक्तहोते है और स्वम् चरित्र निःपेक्ष निष्काम वीतरागी होने के कारण वो किसी भी नेक गुरु के शिष्य को अनंत जन्मो के संस्कार मालूम होते है और जब शिष्य आता है तो उसे शिष्य बनाने से पहले ही जब गुरु को अर्पण करते है तो उसके 90 प्रतिशत संस्कार बुरे माफ करवा देते है और शेष 9 प्रतिशत गुरु स्वम् भुगतता है शिष्य की झोली में सिर्फ 1 प्रतिशत आता है उसको दूर करने के लिए गुरु अपने स्तर पर पूजा ओर पाठ हवन महहमरत्यु जाप अन्य दान धर्म कर दूर करवा देता है इसलिए शिष्य को 1 प्रतिशत से भी कम को गुरु के साथ उसके संरक्षक में रह कर भुगतान करना होता है और उसमें भी हम सोचते है कि ये कर्म कैसे हम भुगतान करेंगे फिर भी हम गुरु को ही दोष देते है मैंने अपने जीवन मे जितने भी उच्च कोटि के परम संत देखे सब बचपन से ही बीमार गरीब और साधारण जीवन मे जीते ओर अपने शिष्यों के कस्ट भुगतते देखा है