हम गुरु से तो सब कुछ चाहते है कि शिष्य कहे ओर गुरु उसे उसी ववत बिना देर किए उसके ओर उसके परिवार के दुखों का निवारण करदे ओर गुरु करता है पर शिष्य उसके प्रति समर्पित तन मन और धन से नही होता उसे अपने स्वार्थ को पूरा करवाना ही आजके शिष्य का धर्म बन गया है यदि गुरु बीमार है या उसे आपकी जरूरत है तो शिष्य अपने को व्यस्त बता कर पल्ला झाड़लेता है और गुरु के प्रति कोई जिममेदार महसूस नही करता यदि कोई शिष्य गुरु के प्रति समर्पित होता है और गुरु जानता है तो गुरु मजनू बन कर उसकी खिदमत लैला की तरह करता है और आध्यात्मिकता की उच्च शिखर पर पहुच के अपना वारिस बना देता है हम।जानते हस गुरु और ईश्वर के बीच लैला ओर मजनू का रिश्ता होता है और ये ही रिस्ता गुरु और शिष्य में बन जाये तो मुक्तिमप्राप्त करने को कोई नही रोक सकता