मजहब कभी आड़े नही आया

मजहब कभी आड़े नही आया

उन संतो के जिनका विस्वास  किसी महजब में न होकर

उसके बंदों में था बंधा नही किसी मजहब से मैं

 मानव हु मैं मानवता में बिस्वास रखता हूं मानवता ही  धर्म मेरा इसी धर्म को मानता  हु मैं

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