मेरा जन्म

जानता हूं

मेरा जन्म लेना ही

मेरे पुनर्जन्म  के रहे शेष कर्मो का भुगतान ही कारण है 

हा ये ही एक मुख्य कारण है

मैं जानता हूं और मुझे मालूम है 

मुझे एक बार स्थूल शरीर मे जन्म ले

ऐसा घर चुनना होगा जहां मैं

संस्कार भुगत सकु ओर

नेक करम कर सकु

क्योकि मैं जानता ओर

मानता हूं क्योंकि 

पिछले जन्म के संस्कार कुछ ऐसे ही है मुझमे 

इसलिए कर्मो का भुगतान तो 

करना ही है मुझे और

 मैं जानता हूं कि मनुष्य हु इसलिए 

इच्छाएं कभी मरती नही ओर

मेरे पूर्व किये कर्म और

इस जन्म में होने वालों  कर्म को भुगतान तभी होगा 

जब मुझे  जन्म ले कर आना होगा इसीलिए 

अपने कर्मो के भुगतान हेतु 

मैंने अपने गुरु को कहा

ओर मैने भी चाह 

ओर मैं चाहता हु की बार बार जन्म।

न ले कर इसी जन्म में कर्मो 

का  भुगतान करने के लिए 

फिर से इस भैतिक दुनिया में 

मुझे ले जन्म ओर आना है  इसलिए

 ईश्वर रूपी गुरु से  निवेदन किया कि

मुझे  फिर से जन्म दिलवा दो

ओर कहा जन्म

लेने के लिए मेरी भी एक  शर्त है

जो तुमको।माननी होंगी

मेरी इच्छा से चुने घर में ही  

घर मे जन्म लूंगा

एहि सोच मैंने भी एक घर चुन लिया 

माता के गर्भ में कर्मो के अनुसार 

जुड़वा  बनकर  जन्म लेना तय किया

ये  सोच थी मन मे की उनके जहा

 में रह कर गलत कर्म 

न करु न गलत संस्कार न घमण्ड न 

ईर्ष्या न द्वेष न मोह न ओर 

कुछ हो हो तो सिर्फ 

आध्यात्मिक सादा जीवन और 

भुगतान उस दर मे पूर्वजन्म के संस्कार का हो

तभी गुरु देव को समाधि अवस्था मे 

मेरे होने वाले माता पिता  का घर इस भौतिक दुनिया मे नजर आया और

बोले  मेरे सूक्ष्म शरीर  और आत्मा को

जाओ उस घर मे तुमको  जन्म लेना है

और जो  माता पिता मिले है तुम्हे 

गुरु रूप में इनही की संरक्षणता

 में आगे का जीवन जीना है  ओर

जीवित रह कर  कर्म करना है 

मैंने भी सोच लिया और आ गया इस घर मे

जहा हर रोज रामायण और गीता का पाठ 

माता पिता के मुख से सुनने को मिलता था 

घर मे बने खाने प्रसाद के रूप में 

भगवान के भोग के बाद ही

प्रसाद रूप में भोजन खाने को मिलता था 

ओर  नेक कमाई पिताकी उसी

का असर मुझपे हो गया

बिगड़ सकता था पर नेक इंसा बन गया 

उम्र अभी गुजरी थी 12 वर्ष ही

तभी मेरे जीवन मे एक संत का पदार्पण 

 हो उनकी  तवज्जुह

मुझे मिल गई

और बदल गई जिंदगी जीने का अंदाज 

ही कुछ और हो गया  ओर   माता पिता के आशीर्वाद से मै गृहस्थ होते हुवे भी एक साधु प्रकृति का इंसान में तब्दील हो गया

ओर अब न जीने की चाह न मरने 

का गम मुझे सताता था और 

जो कर्म कर रहा हु उसी से मुक्ति को पाना था 

 जो जीवन  शेष है   

अब तक मेरे लिए अब 

ओरो के लिए जीना 

ओर मरना जीवन का 

मकसद माना है कर रहा हु निष्काम

 कर्म और सेवा इस दर पर आने  वालों की 

अब तो बाकी रहा  शेष जीवन माता पिता और धर्म की संगत में ही जीना ओर  मुक्त हो जाना है

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