जो निष्ठापूर्वक सद्गुरु का अनुसरण करता है वह उसके समान हो जाता है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को अपने ही स्तर तक उठने में सहायता करता है।” गुरु शिष्य सम्बन्ध मित्रता की उच्चतम अभिव्यक्ति है-क्योंकि यह नि:शर्त दिव्य प्रेम और बुद्धिमता पर आधारित होता है। यह सभी सम्बन्धों में सबसे उन्नत एवं पवित्र होता है।मेरी सोच के अनुसार गुरु की इज्जत ओर मान करना शिष्य के लिए जरूरी है यदि वो ऐसा नही करता तो स्वम् गुरु तुल्य कभी बन नही सकता है इसलिए गुरु देता है और शिष्य उसे ग्रहण करता है