शरीर तीन प्रकार के होते हैं-
मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। मृत्यु के पश्चात् जब मनुष्य स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर धारण करता है तो इसमे मात्र दो तत्व शेष रह जातें है – वायु और आकाश तत्व
आत्मा एक शरीर नहीं बल्कि तीन शरीरों से ढकी हुई है। पहला आवरण बाहरी शरीर है जिसे ‘भौतिक’ या ‘स्थूल’ शरीर भी कहा जाता है। दूसरा आवरण ‘सूक्ष्म’ शरीर है और सब से अंदर का आवरण ‘कारण’ शरीर है।
स्थूल_शरीर
स्थूल शरीर यानी भौतिक शरीर नश्वर शरीर है जो जीव जन्म के समय धारण करता है। यह पाँच तत्वों का बना हुआ है। यह भौतिक शरीर आत्मा का अस्थाई निवास है जो मृत्यु के समय नष्ट हो जाता है।
“स्थूल शरीर गृहस्थ के लिये घर के समान है,
जिसमें रहते हुए वह बाहरी जगत से संपर्क बनाए रखता है”
~ शंकराचार्य, विवेकचूड़ामणि
क्योंकि सुक्ष्म और कारण शरीर को हम इंद्रियों द्वारा नहीं जान सकते इसलिये हम सोचते हैं कि स्थूल शरीर ही सब कुछ है। स्थूल शरीर को हम जाग्रत अवस्सथा मे ही अनुभव कर सकते हैं। यह जड़ है, इसमे चेतनता नहीं है। इसी के माध्यम से आत्मा जड़ पदार्थों के सुख दुख का अनुभव करती है। वैदिक परंपरा मे स्थूल शरीर महत्वपूर्ण है क्योंकि यही परमात्मा की प्राप्ति का साधन है #सूक्ष्म_शरीर
इसको लिंग शरीर भी कहते हैं क्योंकि इसी के द्वारा पूर्वजन्म और भविष्य मे लेने वाले जन्मों के संकेत मिलते हैं। आज की भाषा मे इसे Psyche कह सकते हैं। स्थूल शरीर के विपरीत इसे न देखा जा सकता है, न छूआ जा सकता है। सूक्ष्म शरीर के सत्रह अंश है:
‘पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच प्राण, मन और बुद्धि।’ ~ सदानंद, वेदांतसार
सूक्ष्म शरीर अति सूक्ष्म तत्व से बना है और इस भौतिक शरीर से कार्यशील होता है। जिस प्रकार स्थूल शरीर का अनुभव जाग्रत अवस्था मे होता है, उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर का अनुभव स्वप्न अवस्था मे होता है।
मृत्यु होने पर सूक्ष्म शरीर नष्ट नहीं होता, बल्कि यह आत्मा के साथ अगले जन्म मे मिलने वाले शरीर मे चला जाता है।
“शरीरं यदवाप्रोति यच्चापुत्कामतीक्ष्वर:।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्।।
~भगवद् गीता १५.८
आत्मा जिस शरीर का त्याग करती है, उस शरीर से मन और इंद्रियों को लेकर दूसरे शरीर में चली जाती है जैसे हवा गंध को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है।
जब आवागमन का चक्र चलता है तो आत्मा सूक्ष्म शरीर से बंधी रहती है।
#कारण_शरीर
तीनों शरीरों मे से सब से अंदर का आवरण कारण शरीर है जो आत्मा को ढके हुए हैं।
“वह जो अवर्णिनीय है, अनादि है,
जो अविध्या है, जो स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरों का मूल कारण है, जिसे अपने वास्तविक रूप का ज्ञान नहीं, जो अखंडनीय है,
वह कारण शरीर है।”
~शंकराचार्य, तत्वबोध
कारण शरीर की प्रकृति अज्ञानता यानी अविध्या है जिसे सत्य का ज्ञान नहीं। इसी आवरण के कारण आत्मा को अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान नहीं।
विवेकचुड़ामणि मे शंकराचार्य लिखते हैं कि अविध्या या माया आत्मा का कारण शरीर है जिस के कारण सारे ब्राह्माण्ड का अस्तित्व है। इस अज्ञानता के कारण आत्मा अपनी पहचान स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से करती है।
कारण शरीर भी आत्मा के साथ एक के बाद एक स्थूल शरीर मे प्रवेश करता है।
सुषुप्ति (गहन निद्रा) की अवस्था ही कारण शरीर है। गहन निद्रा की अवस्था मे इंद्रियाँ और मन कार्यशील नहीं रहते, लेकिन फिर भी इस भौतिक जगत और आनंदमयी आत्मा के बीच कारण शरीर का अस्तित्व बना रहता है। इस अवस्था मे आनंद ही आनंद है क्योंकि यह आवरण आत्मा के सबसे निकट है।
परंतु परमानंद के लिये इस शरीर का त्यागना भी ज़रूरी है जो समाधि की अवस्था मे संभव है जब आत्मा इन तीनों शरीरों का त्याग करके मन और माया के दायरे से परे चली जाती है, वहाँ पर आत्मसा़क्षत्कार के द्वारा ब्रह्मज्ञान होता है और ब्रह्मसाक्षत्कार होता है और आत्मा पारब्रह्म मे लीन होती है। इसी को मोक्ष कहते हैं।