सोहम ध्यान योग केंद्र

5 दिसंबर से 27 दिसम्बर तक महात्मा अब्दुल गनी साहब का उर्स होने के कारण उनका स्मरण किया गया इस स्मरण में वो लुफ्त मिला कि जिसको बया करना मुश्किल है  ध्यान में बैठे सभी सोहम ध्यान योग केंद्र के व स्पृतुळ सत्संग के सदस्यों को अलग तरह की अनुभूति हुई और ध्यान अवस्था मे एकाग्रता का अनूठा अनुभव हुआ सभी शरीर मे ध्यान में एक ऊर्जा का अनुभव  हुवा सभी स्थिर अवस्था मे रहे तथा  सशरीर के होने का किसी का आभाष नहीं हुआ ये ग्रुप महात्मा अब्दुल।गनी साहब के चरणों मे नमन कर आशीर्वाद की कामना करता है और उनका फैज  हमारे ऊपर हमेशा बना रहे ये कामना करता है

इस घटना को सुनने के बाद मुझे याद आया कि मेरे पिता ने मुझे हनुमान जी की पीतल की मूर्ति जो कि खंडित हो गई थी उसे 1963 में गलता में विसर्जीत करने हेतु दी ओर बोले कि इसे विसर्जित का आओ मैं ओर मेरा एक दोस्त संत कुमार अग्रवाल के साथ मैं जेब मे खंडित मूर्ति ले कर गलता में विसर्जित करने हेतु दिन  के दोपहर में दो बजे पहुचे उस समय गलता के कुंड में कोई नही था मई के महीना था तेज धूप थी जैसे ही मूर्ति को विसर्जित करने लगा तो अचानक आवाज आई की मुझे मत विसर्जित करो मुझमे जान है हमने घूम कर देखा तो कोई नही था पुनः विसर्जित करने की कोशिश की तो वही आवाज की मुझमे जान है  मैं उनको वापस घर ले आया और बड़े भाई साहब जो।कि रेडियो बनाते थे उनके सोल्डर से राँगे से  हनुमान जी पैर  जोड़ कर अपने पास रख लिया और पिताजी को नही कहा कि मैं वापस ले आया मेरे पिता हनुमान जी को गुरु रूप में मानते थे चुकी राँगे से खंडित जगह को पैर के पास जोड़ दिया था मुझे रात की स्वप्न्न में एक इंसान  दिखे ओर बोले एक भक्त ने मेरे पाँव जला दिए  और पाव जले नजर आए सुबह जब मैंने अपनी माँ को बताया तो वो बोली कालू तूने क्या किया मुझे बता मेरी माँ मुझे प्यार से काला रंग होने के कारण कालू ही कहती थी क्योंकि कोई अन्य परिवार में काला रंग का नही था मैंने उनको।पूरी घटना बता दी उन्होंने मुझे 2 रुपये दिए और चंदन का तेल लाने को कहा ओर मैं बाजार जा कर  ले आया उस तेल की मालिस मैंने हनुमान जी के पांव पर की करीब दो माह तक कि ओर  मुझे फिर से दिखे अब उनके पाँव सही थे उसी दिन से उस खंडित मूर्ति के पांव ताँबे के तार से जोड़ कर मंदिर में विराजमान कर दिया और आज तक विराजमान है ओर मूर्ति भी मेरी दादी की समय की पूजा की जो पूर्वजो से पूजती आई है आज जी भी मैं हु उनकी ही कृपा से हु ओर उनको ही गुरु रूप में मानता हूं और गुरु रूप में  महत्व  देता हूं जो जीवत गुरु है मेरे पिता उनको भी हनुमान रूप में ही मानता हूं हा एक बात और इस खंडित हनुमान जी मूर्ति से मेरे जीवन मे किसी तरह की कोई कमी।नहींहुई दिनोंदिन घर और अध्यात्म में  विशेष उन्नति मिलीं 

बाउजी महाराज फरमाते है कि खुशी में बहुत खुश (उन्माद)  और बहुत दुःख में ज्यादा दुखी नही होना चाहिए , अर्थात सम अवास्था में रहने का प्रयास करना चाहिए!*

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